नई पुस्तकें >> चन्द्रकान्ता चन्द्रकान्तादेवकीनन्दन खत्री
|
4 पाठकों को प्रिय 93 पाठक हैं |
चंद्रकान्ता पुस्तक का ई-संस्करण
बीसवां बयान
महाराज जयसिंह और सुरेन्द्रसिंह के पूछने पर बाबा सिद्धनाथ ने इस दिलचस्प पहाड़ी और कुमारी चन्द्रकान्ता का हाल कहना शुरू किया।
बाबाजी : मुझे मालूम था कि यह पहाड़ी एक छोटा-सा तिलिस्म है और चुनार के इलाके में भी कोई तिलिस्म है। जिसके हाथ से यह तिलिस्म टूटेगा उसकी शादी जिसके साथ होगी उसी के दहेज के सामान पर यह तिलिस्म बंधा है और शादी होने के पहले वह इसकी मालिक होगी।
सुरेन्द्र : पहले यह बताइए कि तिलिस्म किसे कहते हैं, और वह कैसे बनाया जाता है?
बाबा : तिलिस्म वही शख्स तैयार करता है जिसके पास बहुत माल-खज़ाना हो और कोई वारिस न हो। तब वह अच्छे-अच्छे ज्योतिषी और नजूमियों से दरियाफ्त करता है कि उसके या उसके भाइयों के खानदान में कभी कोई प्रतापी या लायक वारिस पैदा होगा या नहीं? आखिर ज्योतिषी या नज़ूमी इस बात का पता देते हैं कि इतने दिनों तक आपके खानदान में एक प्रतापी लड़का होगा, बल्कि उसकी एक जन्मपत्री लिखकर तैयार कर देते हैं। उसी के नाम से खज़ाना और अच्छी-अच्छी कीमती चीज़ों को रख कर उस पर तिलिस्म बांधते हैं।
आजकल तो तिलिस्म बांधने का कायदा है कि थोड़ा-बहुत खज़ाना रख कर उसकी हिफाज़त के लिए दो एक बलि दे देते हैं, वह प्रेत या सांप होकर उसकी हिफाज़त करता है और कहे हुए आदमी के सिवाय दूसरे को एक पैसा लेने नहीं देता, मगर पहले यह कायदा नहीं था। पुराने ज़माने के राजाओं को जब तिलिस्म बांधने की ज़रूरत पड़ती थी तो बड़े-बड़े ज्योतिषी, नज़ूमी, वैद्य, कारीगर और तांत्रिक लोग इकट्ठे किये जाते थे। उन्हीं लोगों के कहे मुताबिक तिलिस्म बांधने के लिए ज़मीन खोदी जाती थी, उसी ज़मीन के अन्दर खज़ाना रख कर ऊपर तिलिस्मी इमारत बनाई जाती थी। उसमें ज्योतिषी, नज़ूमी, वैद्य, कारीगर और तांत्रिक लोग अपनी ताकत के मुताबिक उसके छिपाने की बंदिश करते थे, मगर इसके साथ ही उस आदमी के नक्षत्र और ग्रहों का भी खयाल रखते थे जिसके लिए वह खज़ाना रखा जाता था। कुंवर वीरेन्द्रसिंह ने एक छोटा-सा तिलिस्म तोड़ा है, उनकी जुबानी आप वहां का हाल सुनिए, और हर एक बात को खूब गौर से सोचिए तो आप ही मालूम हो जायेगा कि ज्योतिषी, नज़ूमी, कारीगर और दर्शन शास्त्र के जानने वाले क्या-क्या काम कर सके थे।
जयसिंह : खैर, इसका हाल कुछ-कुछ मालूम हो गया, बाकी कुमार की जुबानी तिलिस्म का हाल सुनने और गौर करने से मालूम हो जायेगा। अब आप इस पहाड़ी और मेरी लड़की का हाल कहिए और यह भी कहिए कि महाराज शिवदत्त इस खोह से क्योंकर निकल भागे और फिर क्योंकर क़ैद हो गये?
बाबा : सुनिये मैं सारा हाल आपसे कहता हूं। जब कुमारी चन्द्रकान्ता चुनार के तिलिस्म में फंस कर इस खोह में आईं तो दो दिनों तक तो इस बेचारी ने तकलीफ से काटे। तीसरे रोज़ खबर लगने पर मैं वहां पहुंचा और कुमारी को उस जगह से छुड़ाया जहां वह फंसी हुई थीं और जिसको मैं आप लोगों को दिखाऊंगा।
सुरेन्द्र : सुनते है कि तिलिस्म तोड़ने में ताकत की ज़रूरत पड़ती है?
बाबा : यह ठीक है, मगर इस तिलिस्म में कुमारी को कुछ भी तकलीफ न हुई और न ताकत की ज़रूरत पड़ी, क्योंकि इसका लगाव उस तिलिस्म से था जिसे कुमार ने तोड़ा है। वह तिलिस्म या उसके कुछ हिस्से अगर न टूटते तो यह तिलिस्म भी न खुलता।
कुमार : (सिद्धनाथ की तरफ देखकर) आपने यह तो कहा ही नहीं कि कुमारी के पास किस राह से पहुंचे? हम लोग इस खोह में आये थे और कुमारी को बेबस देखा था तथा बहुत सोचने पर भी कोई युक्ति ऐसी न मिली थी जिससे कुमारी के पास पहुंच कर इन्हें उस बला से छुड़ाते।
बाबा : सिर्फ सोचने से तिलिस्म का हाल नहीं मालूम हो सकता। मैं भी सुन चुका था कि इस खोह में कुमारी चन्द्रकान्ता फंसी पड़ी हैं और आप छुड़ाने की फिक्र कर रहे हैं मगर कुछ बन नहीं पड़ता। मैं यहां पहुंच कर कुमारी को छुड़ा सकता था लेकिन यह मुझे मंजूर न था, मैं चाहता था कि यहां का माल-असबाब कुमारी के हाथ लगे।
कुमार : आप योगी हैं, योगबल से हर जगह पहुंच सकते हैं मगर मैं क्या कर सकता था?
बाबा : आप लोग इस बात को बिल्कुल मत सोचिए कि मैं योगी हूं। जो काम आदमी के या ऐयारों के किये नहीं हो सकता उसे मैं भी नहीं कर सकता। मैं जिस राह से कुमार के पास पहुंचा और जो-जो किया सो कहता हूं, सुनिये।
|