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चन्द्रकान्ता

देवकीनन्दन खत्री

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2021
पृष्ठ :272
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8395
आईएसबीएन :978-1-61301-007-5

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चंद्रकान्ता पुस्तक का ई-संस्करण

चौदहवां बयान


सुबह को खुशी-खुशी महाराज ने दरबार को किया। तेज़सिंह और बद्रीनाथ भी बड़ी इज्जत से बैठाये गये। महाराज के हुक्म से ज़ालिमखां और उसके चारों साथी दरबार में लाये गये जो हथकड़ी-बेड़ी से जकड़े हुए थे। महाराज के हुक्म से तेज़सिंह ज़ालिमखां से पूछने लगे–

तेज़सिंह : क्यों जी, तुम्हारा नाम ठीक-ठीक ज़ालिमखां है या और कुछ?

जालिम : इसका जवाब मैं पीछे दूंगा, पहले यह बताइये कि आप लोगों के यहां ऐयारों को मार डालने का नियम है या नहीं?

तेज़सिंह : हमारे यहां क्या हिन्दुस्तान भर में कोई धर्मनिष्ठ हिन्दू राजा ऐयार को कभी जान से नहीं मारेगा। हां, वह ऐयार जो अपने कायदे के बाहर काम करेंगा वह ज़रूर मारा जायेगा।

जालिम : तो क्या हम लोग मारे जायेंगे?

तेज़सिंह : यह खुशी महाराज की, मगर क्या तुम ऐयार हो जो ऐसी बातें पूछते हो?

जालिम : हां, हम लोग ऐयार हैं।

तेज़सिंह : राम राम, क्यों ऐयारी का नाम बदनाम करते हो! तुम लोग तो पूरे डाकू हो, ऐयारी से तुम लोगों को क्या वास्ता?

जालिम : हम लोग कई पुश्त से ऐयार होते आ रहे हैं, कुछ आज नये ऐयार नहीं बने।

तेज़सिंह : तुम्हारे बाप-दादा शायद ऐयार हुए हों, मगर तुम लोग खासे दुष्ट डाकुओं में से हो।

ज़ालिम : जब आपने हमारा नाम डाकू ही रखा है तो बचने की कौन उम्मीद हो सकती है?

तेज़सिंह : जो हो, खैर, यह बताओ कि तुम हो कौन?

ज़ालिम : जब मर ही जाना है तो नाम बताकर बदनामी क्यों लें और अपना पूरा हाल भी किसलिए कहें? हां, इसका वादा करो कि जान से न मारोगे, तो कहें।

तेज़सिंह : यह वादा कभी नहीं हो सकता और अपनी ठीक-ठीक हाल भी तुमको झख मार के कहना ही होगा।

ज़ालिम : कभी नहीं कहेंगे।

तेज़सिंह : फिर जूते से तुम्हारे सिर की खूब खबर ली जायेगी।

ज़ालिम : चाहे जो हो।

बद्रीनाथ : वाह रे जूतीखोर।

ज़ालिम : (बद्रीनाथ से) उस्ताद तुमने बड़ा धोखा दिया, मानता हूं तुमको!

बद्रीनाथ : तुम्हारे मानने ही से क्या होता है, आज नहीं तो कल तुम लोगों के सिर धड़ से अलग दिखलाई देंगे।

ज़ालिम : अफसोस! हम कुछ करने न पाये।

तेज़सिंह ने सोचा कि इस बकवास से कोई मतलब न निकलेगा, हज़ार सिर पटकेंगे पर ज़ालिमखां अपना ठीक-ठीक हाल कभी न कहेगा, इससे बेहतर है कि कोई उपाय की जाये, अस्तु सोच कर महाराज से अर्ज़ किया, ‘‘इन लोगों को क़ैदखाने में भेजा जाये फिर जैसा होगा देखा जायेगा, और इनमें से वह एक आदमी (हाथ का इशारा करके) इसी जगह रखा जाये।’’ महाराज के हुक्म से ऐसा ही किया गया।

तेज़सिंह के कहे मुताबिक उन डाकुओं में से एक को उसी जगह छोड़ बाकी सभी को क़ैदखाने की तरफ रवाना किया गया। जाती दफे ज़ालिमखां ने तेज़सिंह की तरफ देख कर कहा, ‘‘उस्ताद तुम बड़े चालाक हो। इसमें कोई शक नहीं कि चेहरे से आदमी के दिल का हाल खूब पहचानते हो, अच्छे डरपोक को चुन के रख लिया, अब तुम्हारा काम निकल जायेगा।

तेज़सिंह ने मुस्करा कर जवाब दिया, ‘‘पहले इसकी दुर्दशा कर ली जाये, फिर तुम लोग भी एक-एक करके इसी जगह लाये जाओगे।’’

ज़ालिमखां और उसके तीन साथी तो क़ैदखाने की तरफ भेज दिये गये पर एक उसी जगह रह गया। हकीकत में वह बहुत डरपोक था। अपने को उसी जगह रहते और साथियों को दूसरी जगह जाते देख घबरा उठा। उसके चेहरे से उस वक़्त और भी बदहवासी बरसने लगी जब तेज़सिंह ने एक चोबदार को हुक्म दिया कि ‘अंगीठी में कोयला भर कर तथा दो-तीन लोहे की सलाखें जल्द ले आओ जिनके पीछे लकड़ी की मूठ लगी हो।’

दरबार में जितने थे सब हैरान थे कि तेज़सिंह ने लोहे की सलाख और अंगीठी क्यों मंगाई? और उस डाकू की तो जो कुछ हालत थी लिखना मुश्किल है।

चार-पांच लोहे की सलाखें और कोयले से भरी हुई अंगीठी लाई गई। तेज़सिंह ने एक आदमी से कहा, ‘‘आप सुलगाओ और इन लोहे की सलाखों को उसमें गरम करो।’’ अब उस डाकू से न रहा गया, उसने डरते हुए पूछा, ‘‘क्यों तेज़सिंह इन सलाखों को तपा कर क्या करोगे?’’

तेज़सिंह : इनको लाल करके दो तुम्हारी दोनों आंखों में, दो दोनों कानों में और एक सलाख मुंह खोल कर पेट के अन्दर पहुंचायी जायेगी।

डाकू : आप लोग तो रहम दिल कहलाते हैं, फिर इस तरह तकलीफ देकर किसी को मारना क्या आप लोगों की रहमदिली में बट्टा न लगायेगा?

तेज़सिंह : (हंस कर) तुम लोगों को छोड़ना बड़े सगंदिलों का काम है, जब तक तुम जीते रहोगे हज़ारों की जान लोगे, इससे बेहतर है कि तुम्हारी छुट्टी कर दी जाये। जितनी तकलीफ लेकर तुम लोगों की जान ली जायेगी उतना ही डर तुम्हारे शैतान भाइयों को होगा।

डाकू : तो क्या अब किसी तरह हमारी जान नहीं बच सकती?

तेज़सिंह : सिर्फ एक तरह से बच सकती है।

डाकू : कैसे?

तेज़सिंह : अगर अपने साथियों का हाल ठीक-ठीक कह दो तो सभी छोड़ दिये जाओगे।

डाकू : मैं ठीक-ठीक हाल कह दूंगा।

तेज़ : हम लोग कैसे जानेंगे कि तुम सच्चे हो?

डाकू : साबित कर दूंगा कि मैं सच्चा हूं।

तेज़ : अच्छा कहो।

डाकू : सुनो, कहता हूं।

इस वक़्त दरबार में भीड़ हुई थी। तेज़सिंह ने आग की अंगीठी क्यों मंगाई? ये लोहे की सलाखें किस काम आयेंगी? यह डाकू अपना ठीक-ठीक हाल कहेगा या नहीं? यह कौन है इत्यादि बातों को जानने के लिए सभी की तबीयत घबरा रही थी। सभी की निगाहें उस डाकू के ऊपर थीं। जब उसने कहा कि मैं ठीक-ठीक हाल कह दूंगा तब और भी लोगों का खयाल उसी तरफ जम गया और बहुत-से आदमी उस डाकू की तरफ कुछ आगे बढ़ आये।

उस डाकू ने अपने साथियों का हाल कहने के लिए मुस्तैद होकर मुंह खोला ही था कि दरबारी भीड़ से एक जवान आदमी म्यान से तलवार खींच कर उस डाकू की तरफ झपटा और इस ज़ोर से एक हाथ का लगाया कि उस डाकू का सिर धड़ से अलग होकर दूर जा गिरा, जब उसी खून भरी तलवार को घुमाता और लोगों को जख्मी कर वह बाहर निकल गया।

उस घबराहट में किसी ने भी उसे पकड़ने का हौसला न किया, मगर बद्रीनाथ कब रुकने वाले थे, साथ ही वह भी उसके पीछे दौड़े।

बद्रीनाथ के जाने के बाद सैकड़ों उस तरफ दौड़ गये जिसमें ज़ालिमखां वगैरह क़ैद किये गये थे। उनको इस बात का शक हुआ कि कहीं ऐसा न हो कि उन लोगों को किसी ने ऐयारी करके छुड़ा लिया हो। मगर नहीं, वे लोग उसी तरह क़ैद थे। तेज़सिंह ने कुछ और पहरे का इन्तज़ाम कर दिया और फिर तुरन्त लौट कर दरबार में चले आये।

पहली बार में जितनी भीड़ लगी हुई थी अब उससे चौथाई रह गई। कुछ तो अपनी मर्जी से बद्रीनाथ के साथ दौड़ गये, कितनों ने महाराज का इशारा पाकर उसका पीछा किया था। तेज़सिंह के वापस आने पर महाराज ने पूछा, ‘‘तुम कहां गये थे?’’

तेज़सिंह : मुझे यह फिक्र पड़ गयी थी कि कहीं ज़ालिमखां वगैरह तो नहीं छूट गये, इसलिए क़ैदखाने की तरफ दौड़ गया था। पर वे लोग क़ैदखाने में ही पाये गये।

महाराज : देखें, बद्रीनाथ कब तक लौटते हैं और क्या करके लौटते हैं?

तेज़सिंह : बद्रीनाथ बहुत जल्द आयेंगे क्योंकि दौड़ने में बहुत ही तेज़ है?

आज महाराज जयसिंह मामूली वक़्त से अधिक देर तक दरबार में बैठे रहे। तेज़सिंह ने कहा भी–‘‘आज दरबार में महाराज को बहुत देर हुई?’’ जिसका जवाब महाराज ने यह दिया कि ‘‘जब तक बद्रीनाथ लौटकर नहीं आते या उनका कुछ हाल मालूम न हो ले, हम इसी तरह बैठे रहेंगे।’’

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