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चन्द्रकान्ता

देवकीनन्दन खत्री

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2021
पृष्ठ :272
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8395
आईएसबीएन :978-1-61301-007-5

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चंद्रकान्ता पुस्तक का ई-संस्करण

बाईसवां बयान

चार दिन रास्ते में लगे, पांचवे दिन चुनार की सरहद में फौज़ पहुंची। महाराज शिवदत्त के दीवान ने यह खबर सुनी तो घबरा उठा, क्योंकि महाराज शिवदत्त तो क़ैद ही हो चुके थे, लड़ने की ताकत किसे थी। बहुत-सी नज़र वगैरह लेकर महाराज जयसिंह से मिलने के लिए हाज़िर हुआ। खबर पाकर महाराज ने कहला भेजा कि ‘‘मिलने की कोई ज़रूरत नहीं, हम चुनार फतह करने नहीं आये हैं क्योंकि जिस दिन तुम्हारे महाराज हमारे हाथ फंसे उसी रोज़ चुनार फतह हो गया, हम दूसरे काम को आये हैं, तुम और कुछ मत सोचो।’’

लाचार होकर दीवान साहब को वापस जाना पड़ा, मगर यह मालूम हो गया कि फलां काम के लिए आये हैं। आज तक उस तिलिस्म का हाल किसी को भी मालूम न था, बल्कि किसी ने उस खण्डहर को देखा तक न था। आज यह मशहूर हो गया कि इस इलाके में कोई तिलिस्म है जिसको कुंवर वीरेन्द्रसिंह तोड़ेंगे। उस तिलिस्मी खण्डहर का पता लगाने के लिए बहुत से जासूस इधर-उधर भेजे गये। तेजसिहं ज्योतिषी भी गये। आखिर उसका पता लग ही गया। दूसरे दिन मय फौज़ के सभी का डेरा उसी जंगल में जा लगा जहां वह तिलिस्मी खण्डहर था।

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