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चन्द्रकान्ता

देवकीनन्दन खत्री

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2021
पृष्ठ :272
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8395
आईएसबीएन :978-1-61301-007-5

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चंद्रकान्ता पुस्तक का ई-संस्करण

दूसरा बयान

विजयगढ़ में क्रूरसिंह* अपनी बैठक के अन्दर नाज़िम और अहमद दोनों ऐयारों के साथ बातें कर रहा है।

(*इनकी उम्र २१ वर्ष या २२ वर्ष की थी, इनके ऐयार भी कमसिन थे।)

क्रूर : देखो नाज़िम, महाराज का तो यह खयाल है कि मैं राजा होकर मन्त्री के लड़के को कैसे दामाद बनाऊँ, और चन्द्रकान्ता वीरेन्द्रसिंह को चाहती है। अब कहो कि मेरा काम कैसे निकले? अगर सोचा जाये कि चन्द्रकान्ता को लेकर भाग जाऊँ, तो कहाँ जाऊँ और कहाँ रहकर आराम करूँ? फिर ले जाने के बाद मेरे बाप की महाराज क्या दुर्दशा करेंगे? इससे तो यही मुनासिब होगा कि पहले वीरेन्द्रसिंह और उसके ऐयार तेजसिंह को किसी तरह गिरफ्तार कर किसी ऐसी जगह ले जाकर खपा डाला जाये कि हजार वर्ष तक पता न लगे, और इसके बाद मौका पाकर महाराज को मारने की फिक्र की जाये, फिर तो मैं झट गद्दी का मालिक बन जाऊँगा और तब अलबत्ता अपनी जिंदगी में चन्द्रकान्ता से ऐश कर सकूँगा। मगर यह तो कहो कि महाराज के मरने के बाद मैं गद्दी का मालिक कैसे बनूँगा? लोग कैसे मुझे राजा बनाएंगे।

नाज़िम : हमारे राजा के यहाँ बनिस्बत काफिरों के मुसलमान ज्यादा हैं, उन सबों को आपकी मदद के लिए मैं राजी कर सकता हूँ और उन लोगों से कसम खिला सकता हूँ कि महाराज के बाद आपको राजा मानें, मगर शर्त यह है कि काम हो जाने पर आप भी हमारे मजहब मुसलमानी को कबूल करें?

क्रूरसिंह : अगर ऐसा है तो मैं तुम्हारी शर्त दिलोजान से कबूल करता हूँ?

अहमद : तो बस ठीक है, आप इस बात का इकरारनामा लिखकर मेरे हवाले करें। मैं सब मुसलमान भाइयों को दिखलाकर उन्हें अपने साथ मिला लूँगा।

क्रूरसिंह ने काम हो जाने पर मुसलमानी मजहब अख्तियार करने का इकरारनामा लिखकर फौरन नाज़िम और अहमद के हवाले किया, जिस पर अहमद ने क्रूरसिंह से कहा, ‘‘अब सब मुसलमानों का एक (दिल) कर लेना हम लोगों के जिम्मे है, इसके लिए आप कुछ न सोचिये। हाँ, हम दोनों आदमियों के लिए भी एक इकरारनामा इस बात का हो जाना चाहिए कि आपके राजा हो जाने पर हमीं दोनों वजीर मुकर्रर किये जाएंगे, और तब हम लोगों की चालाकी का तमाशा देखिये कि बात-की-बात में जमाना कैसे उलट-पुलटकर देते हैं।’’

क्रूरसिंह ने झटपट इस बात का भी इकरारनामा लिख दिया जिससे वे दोनों बहुत ही खुश हुए। इसके बाद नाज़िम ने कहा, ‘‘इस वक्त हम लोग चन्द्रकान्ता के हालचाल की खबर लेने जाते हैं क्योंकि शाम का वक्त बहुत अच्छा है, चन्द्रकान्ता जरूर बाग में गयी होगी और अपनी सखी चपला से अपनी विरह-कहानी कह रही होगी, इसलिए हम को पता लगाना कोई मुश्किल न होगा कि आज कल वीरेन्द्रसिंह और चन्द्रकान्ता के बीच में क्या हो रहा है।’’

ये कह कर दोनों ऐयार क्रूरसिंह से विदा लेकर वहाँ से चले गये।

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