लोगों की राय

नई पुस्तकें >> चन्द्रकान्ता

चन्द्रकान्ता

देवकीनन्दन खत्री

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2021
पृष्ठ :272
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8395
आईएसबीएन :978-1-61301-007-5

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

93 पाठक हैं

चंद्रकान्ता पुस्तक का ई-संस्करण

बीसवां बयान

महाराज शिवदत्तसिंह ने घसीटासिंह और चुन्नीलाल को तेजसिंह को पकड़ने के लिए भेजकर दरबार बर्खास्त किया और महल में चले गये, मगर दिल उनका रम्भा की जुल्फों में ऐसा फंस गया था कि किसी तरह निकल ही नहीं सकता था। उस दिन महारानी से भी हंसकर बोलने की नौबत न आई। महारानी ने पूछा, ‘‘आपका चेहरा सुस्त क्यों हैं‘‘

महाराज ने कहा, ‘‘कुछ नहीं, जागने से ऐसी कैफियत है।’’

महारानी ने फिर से पूछा, ‘‘आपने वादा किया था कि उस गाने वाली को महल में लाकर तुमको भी उसका गाना सुनवाएंगे, सो क्या हुआ?’’

जवाब दिया, ‘‘वह हमीं को उल्लू बनाकर चली गई, तुमको किसका गाना सुनावें?’’

यह सुनकर महारानी कलावती को बड़ा ताज्जुब हुआ। पूछा, ‘‘कुछ खुलासा कहिए, क्या मामला है?’’

‘‘इस समय मेरा जी ठिकाने नहीं है, मैं ज़्यादा नहीं बोल सकता।’’ यह कह कर महाराज वहाँ से उठकर अपने खास कमरे में चले गये और पलंग पर लेटकर रम्भा को याद करने लगे और मन में सोचने लगे, ‘‘रम्भा कौन थी? इसमें तो कोई शक नहीं कि वह थी औरत ही, फिर तेजसिंह को क्यों छुड़ा ले गई? उस पर वह आशिक तो नहीं थी जैसा कि उसने कहा था! हाय रम्भा, तूने मुझे घायल कर डाला। क्या इसी वास्ते तू आई थी? क्या करूं, कुछ पता भी नहीं मालूम जो तुमको ढूँढूँ!’’

दिल की बेताबी और रम्भा के खयाल में रात भर नींद न आई। सुबह को महाराज ने दरबार में आकर दरियाफ्त किया, ‘‘घसीटासिंह और चुन्नीलाल तेजसिंह का पता लगाकर आये या नहीं?’’ मालूम हुआ कि अभी तक वे लोग नहीं आये। खयाल रम्भा ही की तरफ था। इतने में बद्रीनाथ, नाज़िम, ज्योतिषीजी, और क्रूरसिंह पर नज़र पड़ी। उन लोगों ने सलाम किया और एक किनारे बैठ गये। उन लोगों के चेहरे पर सुस्ती और उदासी देखकर और भी रंज बढ़ गया, मगर कचहरी में कोई हाल उनसे न पूछा। दरबार बर्खास्त करके तखलिए में गये और पंडित बद्रीनाथ, क्रूरसिंह, नाज़िम और जगन्नाथ ज्योतिषी को तलब किया। जब वे लोग आये और सलाम करके अदब के साथ बैठ गये तब महाराज ने पूछा, ‘‘कहो, तुम लोगों ने विजयगढ़ जाकर क्या किया?’’

पंडित बद्रीनाथ ने कहा, ‘‘हुजूर काम तो यही हुआ कि भगवानदत्त को तेजसिंह ने गिरफ्तार कर लिया और पन्नालाल और रामनारायण को एक चम्पा नामी औरत ने बड़ी चालाकी और होशियारी से पकड़ लिया, बाकी मैं बच गया। उनके आदमियों में सिर्फ तेजसिंह पकड़ा गया जिसको ताबेदार ने हुजूर में भेज दिया था सिवाय इसके और कोई काम न हुआ।’’

महाराज ने कहा, ‘‘तेजसिंह को भी एक औरत छुड़ा ले गई। काम तो उसने सजा पाने लायक किया मगर अफसोस! यह तो मैं ज़रूर कहूँगा कि वह औरत ही थी जो तेजसिंह को छुड़ा ले गई, मगर कौन थी, यह न मालूम हुआ। तेजसिंह को तो लेती ही गई, जाती दफा चुन्नीलाल और घसीटासिंह पर भी मालूम होता है कि हाथ फेरती गई, वे दोनों उसकी खोज में गये थे मगर अभी तक नहीं आये। क्रूर की मदद करने से मेरा नुकसान ही हुआ। खैर, अब तुम लोग यह पता लगाओ कि वह औरत कौन थी जिसने गाना सुनाकर मुझे बेताब कर दिया और सभी की आँखों में धूल डालकर तेजसिंह को छुड़ा ले गई? अभी तक उसकी मोहिनी सूरत मेरी आंखों के आगे फिर रही है।’’

नाज़िम ने तुरन्त कहा, ‘‘हुज़ूर मैं पहचान गया। वह ज़रूर चन्द्रकान्ता की सखी चपला थी, यह काम सिवाय उसके दूसरे का नहीं!’’ महाराज ने पूछा, ‘‘क्या चपला चन्द्रकान्ता से भी ज़्यादा खूबसूरत है?’’ नाज़िम ने कहा, ‘‘महाराज चन्द्रकान्ता को तो चपला क्या पावेगी मगर उसके बाद दुनिया में कोई खूबसूरत है तो चपला ही है, और वह तेजसिंह पर आशिक भी है।’’ इतना सुन महाराज कुछ देर तक हैरानी में रहे फिर बोले, ‘‘चाहे जो हो, जब तक चन्द्रकान्ता और चपला मेरे हाथ न लगेंगी मुझको आराम न मिलेगा। बेहतर है कि मैं इन दोनों के लिए जयसिंह को चिट्ठी लिखूँ।’’ क्रूरसिंह बोला, ‘‘महाराज जयसिंह चिट्ठी को कुछ न मानेंगे।’’ महाराज ने जवाब दिया, ‘‘क्या हर्ज़ है, अगर चिट्ठी का कुछ खयाल न करेंगे तो विजयगढ़ को फतह ही करूंगा।’’ यह कह मीर मुंशी को तलब किया, जब वह आ गया तो हुक्म दिया, राजा जयसिंह के नाम मेरी तरफ से खत लिखो कि चन्द्रकान्ता की शादी मेरे साथ कर दें और दहेज में चपला को दे दें।’’ मीर मुंशी ने बमूजिब हुक्म के खत लिखा जिस पर महाराज ने मोहर करके पंडित बद्रीनाथ को दिया और कहा, ‘‘तुम्हीं इस चिट्ठी को लेकर जाओ, यह काम तुम्हीं से बनेगा।’’ पंडित बद्रनाथ को क्या उज्र था, खत लेकर उसी वक्त विजयगढ़ की तरफ रवाना हो गये।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book