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भूतनाथ - खण्ड 2

देवकीनन्दन खत्री

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :284
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8361
आईएसबीएन :978-1-61301-019-8

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भूतनाथ - खण्ड 2 पुस्तक का ई-संस्करण

दसवाँ बयान


ऊपर लिखी घटना के दूसरे ही दिन जमानिया में बेढब कोहराम मच गया और सब तरह उदासी छा जाने के साथ-ही-साथ सभों के चेहरे पर शोक के चिह्न दिखाई देने लगे। सबब इसका यह था कि रात को एकाएक राजरानी, यानी कुँअर गोपालसिंह की माता का देहान्त हो गया। आश्चर्य इस बात का था कि वे न कुछ बीमार थीं और न किसी कारण से किसी को उनके यकायक इस तरह मर जाने की आशंका थी।

बेचारी रानी साहेबा बहुत ही नेक, रहमदिल और धर्मात्मा थीं। घर के लोग तो उन्हें जी-जान से चाहते और मुहब्बत करते ही थे, उनकी रिआया भी उन्हें माता ही के समान मानती थी, क्योंकि समय-समय पर उनकी तरफ से रिआया को अच्छी तरह मदद पहुँचा करती थी और यही सबब था कि उनके यकायक मर जाने का गम तमाम शहर में छा गया था, यहाँ तक कि छोटे-छोटे लड़के और लड़कियों की भी सूरत उदास और आँखे नम दिखाई देती थीं।

राजा साहब का दिल इस बात से एकदम टूट गया और कुँअर गोपालसिंह की उदासी का तो कहना ही क्या है, उनके लिए तो मानो आज उनके सुख और सौभाग्य का जहाज ही डूब गया।

जाहिर में यह एक मामूली घटना थी और इस विषय में विस्तार के साथ लिखने की कुछ जरूरत भी नहीं है, अगर लिखने की कोई बात है भी तो केवल इतनी ही कि कुँअर गोपालसिंह ने बड़े दुःख के साथ उनकी क्रिया की, घर में और बारह दिनों तक उदासी छाई रही, कुंअर गोपालसिंह बहुत दिनों तक अपने कमरे से बाहर निकले ही नहीं और राजा साहब ने भी दारोगा पर भरोसा करके राज्य के काम से एक तरह पर दिल ही खैंच लिया जिससे कुछ दिनों के लिए दारोगा का भाग्य उदय हो गया और उसे दौलत जमा कर लेने का अच्छा मौका हाथ लगा।

मातमपुर्सी के लिए बहुत-से लोग जमानिया और आये और गये, उन्हीं में एक भैयाराजा भी थे, यद्यपि वे इस घर से बहुत दुःखी होकर चले गये थे और पुनः आने की इच्छा नहीं थी, परन्तु इस मौके पर उन्होंने अपने भाई-भतीजे के पास आना बहुत जरूरी समझा और यही उनके लिए मुनासिब भी था, यद्यपि उनसे घर में रहने के लिए बहुत आग्रह किया गया मगर वे तीन दिन से ज्यादे न रहे और पुनः अपने गुप्त स्थान की ओर चले गये।

मातमपुर्सी के लिए अपने मालिक की तरफ से भूतनाथ को भी जमानिया जाना पड़ा और इन्द्रदेव भी गये और कई दिनों तक रहे मगर प्रभाकरसिंह जमानिया नहीं गये और न राजा साहब या कुँअर गोपालसिंह ही से मुलाकात की यद्यपि उनसे और राजा साहब से किसी तरह की रिश्तेदारी भी थी। आगे चल कर हमारे किस्से को कदाचित इस घटना से कुछ संबन्ध पड़ जाय इसलिए हमने मुख्तसर में यहाँ पर इसका बयान कर दिया।

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