अतिरिक्त >> आराधना आराधनासूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
|
2 पाठकों को प्रिय 248 पाठक हैं |
जीवन में सत्य, सुंदर को बखानती कविताएँ
रँग गये साँवले नयन अली के
रँग गये साँवले नयन अली के;
छाये छाँह पर शयन, फली के।
विम्ब-पके अधरों के ऊपर
चूने लगे रँग रस के शीकर;
अँग की अँगिया चिपक-चिपककर
बोली वय के वयन लली के।
आँखों खगों की पाखें लग गयीं,
भू पर नभ की साखें लग गयीं,
लोगों के मन की माखें तग गयीं,
जैसे गोले पर चयन गली के।
¤ ¤
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book