अतिरिक्त >> आराधना आराधनासूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
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जीवन में सत्य, सुंदर को बखानती कविताएँ
मरा हूँ हजार मरण
मरा हूँ हजार मरण
पायी तब चरण-शरण।
फैला जो तिमिर-जाल
कट-कटकर रहा काल,
अँसुओं के अंशुमाल,
पड़े अमित सिताभरण।
जल-कलकल-नाद बढ़ा,
अन्तर्हित हर्ष कढ़ा,
विश्व उसी को उमड़ा,
हुए चारु-करण सरण।
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