अतिरिक्त >> आराधना आराधनासूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
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जीवन में सत्य, सुंदर को बखानती कविताएँ
कुंजों की रात प्रभात हुई
कुंजों की रात प्रभात हुई;
कूजित, अलसायी गात हुई।
पलकें मुद गयीं, खुली रेखा,
तिर्यक, सित किरणों में देखा,
लिख गयी नवल-जीवन-लेखा,
ज्योति के पत्र की ज्ञात हुई।
दिन की नभ-नील बनी रजनी,
प्रहरी नयनों सोयी सजनी,
क्या ग़ोर रहा, क्या भी गजनी,
किरनों की सरि सम्पात हुई।
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