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आराधना

सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :100
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 8338
आईएसबीएन :0

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जीवन में सत्य, सुंदर को बखानती कविताएँ



कुंजों की रात प्रभात हुई


कुंजों की रात प्रभात हुई;
कूजित, अलसायी गात हुई।

पलकें मुद गयीं, खुली रेखा,
तिर्यक, सित किरणों में देखा,
लिख गयी नवल-जीवन-लेखा,
ज्योति के पत्र की ज्ञात हुई।

दिन की नभ-नील बनी रजनी,
प्रहरी नयनों सोयी सजनी,
क्या ग़ोर रहा, क्या भी गजनी,
किरनों की सरि सम्पात हुई।

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