अतिरिक्त >> आराधना आराधनासूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
|
2 पाठकों को प्रिय 248 पाठक हैं |
जीवन में सत्य, सुंदर को बखानती कविताएँ
धाये धाराधर धावन हे !
धाये धाराधर धावन हे!
गगन-गगन गाजे सावन हे!
प्यासे उत्पल के पलकों पर
बरसे जल धर-धर-धर-धर-धर,
शीकर-शीकर से श्रम पीकर;
नयन-नयन आये पावन हे!
श्याम दिगन्त दाम-छबि छायी,
बही अनुत्कुण्ठित पुरवाई,
शीतलता-शीतलता आयी,
प्रियतम जीवन-मन भावन हे!
¤ ¤
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book