लोगों की राय

अतिरिक्त >> आराधना

आराधना

सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :100
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 8338
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 2 पाठकों को प्रिय

248 पाठक हैं

जीवन में सत्य, सुंदर को बखानती कविताएँ



पद्मा के पद को पाकर हो


पद्मा के पद को पाकर हो
सविते, कविता को यह वर दो।

वारिज के दृग रवि के पदनख
निरख-निरखकर लहें अलख सुख;
चूर्ण-ऊर्मि-चेतन जीवन रख
हृदय-निकेतन स्वरमय कर दो।

एक दिवस के जीवन में जय,
जरा-मरण-क्षय हो निस्संशय,
जागे करुणा, अक्षतपश्चय,
काल एक को सुकराकर हो।

मेरी अलक धूलिपग पोंछे,
श्रम शरीर का पलक अँगोछे,
उठें ऊर्ध्व मन से जो ओछे,
मिलें निलय में एक प्रकर दो।

¤
¤

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai