ई-पुस्तकें >> 1857 का संग्राम 1857 का संग्रामवि. स. वालिंबे
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संक्षिप्त और सरल भाषा में 1857 के संग्राम का वर्णन
अंततः तात्या टोपे को 18 अप्रैल 1859 के दिन सिपर्डा में फांसी पर लटका दिया गया। तात्या को फांसी का आदेश पढ़कर सुनाया गया। मेजर रीड ने उसकी आखिरी इच्छा पूछी— ‘‘तात्या, आपकी अंतिम इच्छा क्या है?’’
‘‘सिर्फ एक। कृपया मेरे घरवालों को सताइये मत। इस बगावत के साथ उनका कोई सरोकार नहीं है। मैं कंपनी सरकार का गुनहगार हूं। जो कुछ भी मैंने किया, उसके साथ घरवालों का संबंध नहीं है।’’
इसी घटना से असंतोष का बीजारोपण हुआ था। विदेशी हुकूमत के खिलाफ उठे जनांदोलन में तात्या टोपे का बलिदान महत्त्वपूर्ण रहा।
8 अप्रैल 1857 को मंगल पांडे को फांसी पर लटकाया गया था। उसी दिन से आजादी की पहली लड़ाई शुरू हो गयी थी। आजादी के इस पहले यज्ञकुंड में अंतिम आहुति तात्या टोपे ने दी। यह सच था कि यह विद्रोह असफल रहा। लेकिन इस विद्रोह का महत्त्व कम नहीं हुआ। यह आजादी की पहली लड़ाई का पड़ाव था। आजादी के लिए निरंतर लड़ने की प्रखर प्रेरणा आनेवाली पीढ़ी को मिल गयी।। असफल संग्राम ने सफलता के बीज बो दिये थे।
समाप्त
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