ई-पुस्तकें >> 1857 का संग्राम 1857 का संग्रामवि. स. वालिंबे
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संक्षिप्त और सरल भाषा में 1857 के संग्राम का वर्णन
कैप्टन डगलस बाहर जाकर सिपाहियों को धमकाने लगा, ‘‘आप यहां पल भर भी मत रुकिये। शहर के बाहर राजमहल में आप मेरा इंतजार करें।’’
मेरठ से दौड़ लगाकर आये हुए सिपाहियों को कैप्टन डगलस का यह व्यवहार अच्छा नहीं लगा। उन्होंने राजघाट की ओर जानेवाली सड़क से दिल्ली में प्रवेश किया। मेरठ से आने वाले सिपाहियों का झुंड दिल्ली शहर में दाखिल हो रहा था। दिल्ली की बिगड़ी हुई स्थिति देखकर ज्वाइंट मजिस्ट्रेट मेटकाफ मन ही मन डर गया। वह स्वयं को दिल्ली का बादशाह मानता था। बहादुरशाह अब सिर्फ नाम का बादशाह रह गया था।
मेरठ की घटना की खबर पिछले दिन ही मेटकाफ को मालूम हो गयी थी। वह किसी भी हालत में दिल्ली को बचाना चाहता था। वह सोच रहा था कि अब तुरंत कुछ कार्रवाई करनी चाहिए। वह तुरंत बग्घी में जाकर बैठ गया। विद्रोही सिपाहियों को कलकत्ता गेट के पास रोकना जरूरी था। वहां सैकड़ों अंग्रेज स्त्री-पुरुष डर के मारे चीख रहे थे। मेटकाफ को देखकर वे सभी गिड़गिड़ाये, ‘‘खुदा के लिए हमें बचाइये !’’
मेटकाफ ने कलकत्ता गेट बंद करके हथियारबंद सिपाहियों का पहरा लगा गिया। अंग्रेज अधिकारियों द्वारा लगाये गये प्रतिबंध के विरुद्ध सिपाहियों ने हथौड़ियों से कलकत्ता गेट तोड़ डाला। अब उनको कोई रोक नहीं सकता था।दिल्ली के अंग्रेज कालोनी पर डर का साया मंडराने लगा। अंग्रेज परिवारों की रक्षा के लिए मेटकाफ ने कमिश्नर साइमन फ्रेजर से विचार-विमर्श किया। ज्वाइंट मजिस्ट्रेट की हैसियत से मेटकाफ ने पुलिस को आदेश दिया, ‘‘दिल्ली शहर में घुस आये इन चोर-बदमाशों की हड्डी पसली एक कर दो। कंपनी सरकार के हुक्म की तौहीन करने वालों को यही सबक ठीक रहेगा।’’
सभी पुलिस भारतीय थे। किसी ने भी इस हुक्म की तालीम नहीं की। वे अपनी जगह पर शांत खड़े रहे। मेटकाफ को विद्रोह का अंदाजा लग गया। बागी सिपाहियों ने मारकाट शुरू कर दी थी। इस खबर से घबराये हुए कोतवाली के सभी अंग्रेज अधिकारी कलकत्ता गेट पर इकट्ठा हुए। उन्होंने बागी सिपाहियों पर गोली बरसाना शुरू किया। यह देखकर दिल्लीवासी बिफर गये। वे हथियार लेकर देसी सिपाहियों की सहायता करने दौड़ पड़े। थोड़ी देर में यह दंगा कश्मीरी गेट तक पहुंच गया। जनता के इस विद्रोह पर काबू पाना मुश्किल था।
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