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दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642
आईएसबीएन :9781613010624

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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...


जब कस्तूरीलाल चला गया तो चरणदास ने पूछा, ‘‘क्या बात हुई है जीजाजी?’’

‘‘देखो चरणदास, तुम अपनी पत्नी से झूठ बोल रहे हो। तुम्हारी पत्नी मेरे सामने झूठ बोल रही है। सुमित्रा ने भी झूठ बोला है और कस्तूरी भी झूठ बोल रहा है। मज़े की बात तो यह है कि एक का झूठ दूसरे के झूठ को प्रकट करता जा रहा है।’’

‘‘मेरे झूठ का तो कारण है।’’

‘‘पहले तुम्हीं बताओ कि यह क्या झगड़ा है?’’

‘‘एक औरत, जिसका नाम शरीफन है, बीमा की पॉलिसी के सिल-सिले में मुझसे मिली थी। मैं उसकी मुहब्बत में फँस गया हूँ। पिछले तीन दिन से उसे कष्ट था। उसके बच्चा हुआ है। तीन रात मैं उसके पास रहा हूँ। आज उसका ज्वर टूटा है और मैं अपने घर जाने का विचार कर रहा हूँ। उस बेचारी का यहाँ कोई नहीं है, इसलिए मैं यह कहना अपना फर्ज़ समझता था कि उसके पास रहूँ।’’

‘‘बच्चा क्या हुआ है–लड़का या लड़की?’’

‘‘लड़का।’’

यह सूचना सुन गजराज गम्भीर विचार में पड़ गया। उसे चुप देख चरणदास ने कह दिया, ‘‘वह औरत कहती है कि आप उसको जानते हैं। कभी आप उसे लखनऊ स्टेशन पर मिले थे।’’

‘‘बहुत प्रेम है क्या तुम्हारा उसके साथ?’’

‘‘जी, वह बहुत ही सुन्दर है। इसके अतिरिक्त वह सभ्य-सुशील, शिक्षित और समझदार है। उससे बातें करने में आनन्द आता है।’’

‘‘तुमको विश्वास है कि वह लड़का तुम्हारा है?’’

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