लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> दो भद्र पुरुष

दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642
आईएसबीएन :9781613010624

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

377 पाठक हैं

दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...


कस्तूरीलाल अपने कमरे में कपड़े बदलने के लिए चला गया। इस समय सुमित्रा आ गई। वह अपनी एक सहेली के घर गई हुई थी। माँ को बरामदे में चिन्ताग्रस्त खड़ी देख पूछने लगी, ‘‘क्या बात है?’’

‘‘तुम्हारे फूफाजी का टेलीफोन आया था। वे तुम्हारे पिता के विषय में पूछ रहे थे।’’

‘‘मुझे भी फोन आया था। मैंने बता दिया था कि वे तीन दिन से दौरे पर गये हुए हैं। माँ, तुम्हारे विषय में पूछ रहे थे। मैंने कहा कि तुम अपनी एक सहेली से मिलने के लिए गई हो।’’

‘‘कब आया था उनका टेलीफोन?’’

‘‘लगभग एक घण्टा हुआ है।’’

‘‘पर मैंने तो कहा है कि घर से कहीं गई ही नहीं।’’

सुमित्रा खिलखिलाकर हँस पड़ी। उसकी हँसी का शब्द सुनकर कस्तूरीलाल वहाँ चला आया। मोहिनी ने बताया, ‘‘एक और गड़बड़ हो गई है। सुमित्रा ने जीजाजी को कहा है मैं कहीं गई हुई थी और मैंने कहा कि मैं कहीं गई ही नहीं थी।’’

‘‘सुमित्रा, मेरे विषय में कुछ बताया है?’’

‘‘हाँ, यही कि तुम कॉलेज लाइब्रेरी गये हुए हो।’’

‘‘झूठ बोलने की क्या आवश्यकता थी?’’

‘‘मैं नहीं चाहती कि उनको यह पता चले कि तुम दिन-भर यहीं पड़े रहते हो।’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai