लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> दो भद्र पुरुष

दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642
आईएसबीएन :9781613010624

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

377 पाठक हैं

दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...


समय के हेर-फेर में गिरधारीलाल, परमेशरी, सोमनाथ और सरस्वती परलोक सिधार गये। गजराज ने अपने पूर्वजों से चले आ रहे सर्राफे के कार्य को छोड़ ठेकेदारी को अपना लिया था। वह सन् १९१९ में लाहौर से दिल्ली चला गया और वहाँ जाकर नई दिल्ली के निर्माणकर्ता ठेकेदारों में से एक हो गया। यों तो अपने पूर्वजों का कार्य समेटते समय उसके पास तीन लाख की सम्पत्ति थी, परन्तु ठेकेदारी और वह भी नई दिल्ली में, पर्याप्त लाभ दे रही थी।

सोमनाथ का लड़का चरणदास दसवीं कक्षा उत्तीण कर जे.ए.वी. में प्रविष्ट हो गया और उसे उत्तीर्ण करने के उपरान्त एक स्कूल में अध्यापक का कार्य करने लगा। तीस रुपया मासिक वेतन पर एक प्राइवेट स्कूल में उसको नौकरी मिल गई।

पिता का देहान्त हो जाने पर लक्ष्मी ने अपने भाई चरणदास के विवाह का प्रबन्ध कर दिया। लाट साहब के दफ्तर के एक चपरासी रामस्वरूप की लड़की मोहिनी से १९१३ में उसका विवाह हो गया।

चरणदास ने देखा कि जो कुछ उसके पिता ने उसकी बहिन के विवाह पर दिया था, उसका पासंग-भर भी उसको अपने विवाह पर नहीं मिला। फिर भी वह खिन्न अथवा असन्तुष्ट नहीं था। उसकी पत्नी सुन्दर और सुशील थी।

लक्ष्मी ने भाई की दीनावस्था देखी तो वह उसको दिल्ली ले गई और नगर के एक सस्ते-से मकान में ठहराकर उसको पचास रुपये मासिक पर एक स्कूल में नौकरी दिलवा दी।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book