ई-पुस्तकें >> दो भद्र पुरुष दो भद्र पुरुषगुरुदत्त
|
10 पाठकों को प्रिय 377 पाठक हैं |
दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...
गजराज ने कहा, ‘‘तुमको यदि पसन्द नहीं तो तुम उससे मत बोलो। वह बोलने के लिए तुम्हें विवश तो करती नहीं।’’
‘‘मैं उसके विषय में नहीं कहती। मैं तो कस्तूरी की बात कह रही हूँ। कस्तूरी मेरा भाई है, मेरे साथ खेलने की अपेक्षा वह उनके साथ खेलता है।’’
‘‘अच्छा, कस्तूरी से पूछता हूँ। कहाँ है वह?’’
‘‘आज वह मामी के साथ बाज़ार गया है।’’
‘‘क्या करने?’’
‘‘मुझे मालूम नहीं।’’
गजराज ने लक्ष्मी से इस विषय में पूछना चाहा, किन्तु पता चला कि वह भी बाज़ार गई है। घर पर सुभद्रा और यमुना ही थीं। ‘‘तुम्हें मम्मी ने चलने के लिए नहीं कहा था?’’ गजराज ने यमुना से ही पुनः पूछा।
‘‘कहा था, परन्तु मैं गई नहीं। मैंने कस्तूरी से कहा था कि वह भी न जाय किन्तु वह माना नहीं।’’
‘‘यमुना! तुम घर में सब पर शासन जमाना चाहती हो?’’
‘‘इसमें शासन की क्या बात है? कस्तूरी मेरा भाई है, उसको मेरी बात माननी चाहिए।’’
‘‘कस्तूरी अपनी मम्मी का लड़का भी तो है, इसलिए वह उसके साथ गया है।’’
|