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दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642
आईएसबीएन :9781613010624

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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...

: ६ :

गजराज को बीमा कम्पनी का नोटिस मिल गया। गजराज उस नोटिस को पढ़ विचार कर रहा था कि चरणदास के द्वारा शरीफन को ज़ामिन बनने के लिए कहे। उसका विचार था कि वह काफी धनवान हो चुकी होगी। फिर भी जो कुछ उसने चरणदास के साथ किया था, उससे तो वह दो गालियों की ही आशा करता था। रात-भर वह उस कठिनाई से निकलने का मार्ग विचार करता रहा। प्रातःकाल वह इसी कारण देर तक सोया रहा।

लक्ष्मी को आज अपने पति को इस समय तक घर पर ही देख विस्मय हुआ। वह अपने कमरे से नाश्ते के लिए भी नहीं निकला था।

लक्ष्मी ने उसके कमरे में पहुँच खड़े-खड़े ही पूछा, ‘‘क्या बात है, आपने अभी तक नाश्ता भी नहीं किया? तबियत तो ठीक है?’’

‘‘आज करने के लिए कुछ काम नहीं रहा है। कम्पनी की डायरेक्टरी छिन गई है। कस्तूरी के श्वसुर और तुम्हारी भाभी मोहिनी ने मिलकर मुझको उस पद से हटा दिया है। इस कारण अब मैं बिना पेन्शन के रिटायर्ड हो गया हूँ।’’

‘‘कल मैंने अपने दो कड़े बेचकर मंगल, सोहन, सरदार, तेजू और भगवती को वेतन देकर विदा कर दिया है। इस समय कोठी में तीन नौकर रह गये हैं–रसोइया, चपरासी और भंगी।

‘‘रसोइया बैरे का काम भी करेगा, चपरासी झाड़-फूँक भी करेगा। और भंगी माली का काम बी करेगा। तीनों का वेतन दस-दस रुपये बढ़ा दिया है।

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