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दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642
आईएसबीएन :9781613010624

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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...


‘‘पिताजी, आपके हिस्से जब बाज़ार में बिके और उन लोगों को वोट देने का अधिकार मिला तो वे आपका समर्थन नहीं कर सके। इस समय तीन व्यक्ति हैं, जो कि अधिकांश हिस्सों के स्वामी हैं। लाला मनसारामजी के चालीस प्रतिशत हिस्से हैं। मोहिनीदेवी के हिस्से पैंतीस प्रतिशत हैं, पाँच प्रतिशत मेरे हैं; मामाजी के भी लगभग इतने ही है। आपके तो केवल दस प्रतिशत ही रह गये हैं।’’

‘‘मामाजी कौन?’’

‘‘मामाजी, और कौन?’’

‘‘तो क्या मोहिनी ने भी अपने पति का समर्थन नहीं किया?’’

‘‘जी नहीं, आजकल मामा और मामी मे अनबन है।’’

‘‘क्यों?’’

‘‘ऐसे ही, जैसे आप और माताजी में है। ऐसा प्रतीत होता है कि मामाजी ने, जब वे कम्पनी के सेक्रेटरी थे, लाखों रुपये मामी के नाम कर रखे थे। जब सुमित्रा का विवाह हुआ तो मामाजी ने उस विवाह का बहिष्कार कर दिया। इससे दोनों में बनती नहीं। मामाजी पृथक् मकान लेकर रहते हैं और मामी पृथ्वीराज रोड वाली कोठी पर ही रहती हैं। सुमित्रा का पति, जो गवर्नमेंट ऑफ इण्डिया के वित्त विभाग में है, सुमित्रा के साथ कोठी में रहता है और वही मामी की परामर्शदाता है।

‘‘आपके अधिकांश हिस्से मामी ने खरीदे हैं। वे तो और हिस्से भी खरीदने की इच्छुक हैं, परन्तु अब और हिस्से बिकाऊ नहीं हैं।’’

‘‘तो क्या वह भी डायरेक्टर हैं?’’

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