ई-पुस्तकें >> दो भद्र पुरुष दो भद्र पुरुषगुरुदत्त
|
10 पाठकों को प्रिय 377 पाठक हैं |
दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...
: २ :
कम्पनी के मित्रों, सम्बन्धियों, प्रमुख-प्रमुख कर्मचारियों और दिल्ली के प्रमुख-प्रमुख रईसों को बरात में सम्मिलित होने के लिए निमन्त्रण-पत्र भेजे गए। परन्तु चरणदास के परिवार को आमंत्रित नहीं किया गया और वे आये भी नहीं।
विवाह से एक दिन पूर्व की बात है, सुमित्रा चाँदनी चौंक में कुछ कपड़ा खरीदने के लिए गई हुई थी। वह एक दुकान पर कुछ सामान खरीद रही थी कि घटनावश कस्तूरी भी उसी दुकान पर आ गया। कस्तूरी ने उसे देखा तो नमस्कार कर मुस्करा दिया। सुमित्रा ने और खरीद बन्द कर दुकानदार को रसीद बनाने के लिए कहा। कस्तूरीलाल ने उसको भाग जाने का प्रबन्ध करते देख पूछा, ‘‘बस, खरीद हो चुकी?’’
‘‘खतम तो नहीं हुई; किन्तु जब आप आ गए हैं तो आपके कार्य में मैं बाधक बनना नहीं चाहती।’’
‘‘मेरे काम में विघ्न क्यों होगा? आप खरीदिये, मैं बाद में आकर भी खरीद सकता हूँ।’’
‘‘जी नहीं, आप खरीदिए। कहीं विवाह की तैयारी में विलम्ब न हो जाय।’’
‘‘ओह! आप आ रही हैं न?’’
‘‘बिलकुल नहीं।’’
‘‘क्यों?’’
|