लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> दो भद्र पुरुष

दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642
आईएसबीएन :9781613010624

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

377 पाठक हैं

दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...

: ३ :

चरणदास लौटकर आया तो लक्ष्मी ने कहा, ‘‘यह नुसखा मुझको दे दो। मैं दवाई भेज दूँगी।’’

‘‘नहीं बहिन, इसकी आवश्यकता नहीं। यह डॉक्टर मूर्ख है। इसकी औषधि पर मुझे विश्वास नहीं।’’

‘‘क्यों?’’ लक्ष्मी ने विस्मय से पूछा।

‘‘डॉक्टर, अध्यापक और गुरु विवेकी व्यक्ति होने चाहिएँ। किन्तु यह तो निरा विवेकहीन व्यक्ति प्रतीत होता है। इस कारण यह अच्छा डॉक्टर नहीं हो सकता।’’

‘‘इसका चिकित्सा-कार्य तो बहुत अच्छा है। यह पन्द्रह रुपये फीस लेता है और लोग सहर्ष देते हैं।’’

‘‘बहिन! कभी तुमने किसी लठ-गँवार और अनपढ़-दुराचारी को धर्म-गुरु बनते भी देखा ही होगा। उसके भी चेले-चाँटे होते हैं। यही बात इस डॉक्टर की है।’’

उसने फिर कहा, ‘‘देखो, सुभद्रा को कल एक सौ चार डिग्री ज्वर था। होमियोपैथी के सिद्धान्तानुसार इसे औषधि दी गई और उससे यह ठीक हो गई। यह गँवार उसको ‘क्वैकरी’ और अवैज्ञानिक कह गया है। यह मूर्ख और अभिमानी है। इससे भगवान् बचाये।’’

‘‘मैं तो, तुम जानते ही हो, कुछ पढ़ी-लिखी नहीं। मुझे तो यह पता है कि जब भी घर में कोई बीमार होता है तो यही आता है, दवाई दे जाता है और हम स्वस्थ हो जाते हैं।’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book