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दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642
आईएसबीएन :9781613010624

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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...

चतुर्थ परिच्छेद

: १ :

पंजाब बीमा कम्पनी में मनसाराम नरूला के तैंतीस प्रतिशत और गजराज के पचपन प्रतिशत हिस्से थे। शेष बारह प्रतिशत लगभग सौ हिस्सेदारों में बँटे हुए थे। गजराज के हिस्सों में से दस प्रतिशत चरणदास ने खरीद रखे थे, पाँच प्रतिशत लक्ष्मी के नाम पर थे। अतः अब तक गजराज कम्पनी पर शासन करता था, परन्तु जब चरणदास को सेक्रेटरी के पद से हटाने का प्रश्न आया तो गजराज को भय लग गया कि चरणदास डायरेक्टरों के बोर्ड के समक्ष अपील करेगा। वह सब डायरेक्टरों से मिलेगा और अपनी सफाई देने के समय उसके भी कई रहस्य खोल देगा। वह समझता था कि यदि मनसाराम नरूला उसके विरुद्ध हो गया तो उसके विरुद्ध सम्भावित आरोपों की भी जाँच हो जायेगी। इस अवस्था में क्या होगा, कहा नहीं जा सकता। अतः उसने चरणदास को सेक्रेटरी के पद से हटाने के पूर्व मनसाराम नरूला से बात कर ली।

मनसाराम का प्रश्न था, ‘‘चरणदास ने कुछ अपराध किया है?’’

‘‘किया तो है, परन्तु सिद्ध करना इतना सुगम नहीं। इस कारण यदि डायरेक्टर मेरे प्रस्ताव को स्वीकार कर लें तो मैं धमकाकर चरणदास को त्यागपत्र देने के लिए मना लूँगा।’’

‘‘चरणदास के स्थान पर किसको नियुक्त करना चाहते हैं?’’

‘‘विचार है कि यदि कस्तूरीलाल को उस स्थान पर नियुक्त कर दिया जाय तो हमारा ‘स्टेटस को’ बना रहेगा।’’

‘‘मैं इसको पसन्द नहीं करता। ऐसी अवस्था में सब शेयर होल्डर्स की मीटिंग बुलाकर नया डायरेक्टर बोर्ड बनाने का प्रस्ताव उपस्थित कर दूँगा।’’

‘‘यह कैसे हो सकता है? अभी तो वार्षिक मीटिंग होने में तीन मास शेष हैं।’’

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