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दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642
आईएसबीएन :9781613010624

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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...


सुमित्रा की बातें सुन मोहिनी को भारी विस्मय हुआ। जहाँ वह सुमित्रा के ज्ञान पर आश्चर्य करती थी, वहाँ लक्ष्मी के प्रति सहानुभूति तथा पुत्र की दूषित मनोवृत्ति पर विस्मय भी करती थी।

मोहिनी ने कहा, ‘‘कुछ भी हो। मुझको लक्ष्मी बहिन की सहृदयता पर विश्वास है। यदि उसने भी हमको तीन दिन से स्मरण नहीं किया तो अवश्य कोई महान् भ्रम उत्पन्न हो गया है। वह भ्रम बिना मेल-जोल के मिट नहीं सकता। इस कारण मैं उनसे मिलने के लिए जाना चाहती हूँ।’’

‘‘तो चलो।’’ सुमित्रा अपने कमरे में गई। बालों को जो अभी सूखे नहीं थे, एक रिबन से बाँध नई धुली सूती साड़ी पहन, वह माँ के साथ जाने के लिए तैयार हो गई। उन्होंने अपनी मोटर निकलवाई और गजराज की कोठी में जा पहुँचीं।

लक्ष्मी लॉन में बैठी एक पुस्तक पढ़ रही थी। कस्तूरी कपड़े पहन मोटर में कहीं बाहर जाने के लिए उसे स्टार्ट कर रहा था। गजराज रात देर से आया था, इस कारण अभी सो रहा था।

लक्ष्मी ने मोहिनी और सुमित्रा को मोटर से उतरते देखा तो वह लॉन से उठ उनकी ओर चली आई। कस्तूरी भी अपनी मोटर छोड़ इनसे मिलने के लिए वहाँ आ गया। साधारण अभिवादन के बाद वे सभी ड्राइंग-रूम में चली आईं। कस्तूरी बाहर चला गया। सुख-समाचार पूछने के बाद लक्ष्मी ने पूछा, ‘‘भैया का अब क्या करने का विचार है?’’

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