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दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642
आईएसबीएन :9781613010624

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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...


लक्ष्मी भी इस समाचार को सुन अवाक् बैठी रह गई। जब कई बार मोहिनी ने ‘हलो-हलो’ किया तो लक्ष्मी ने कहा, ‘‘भाभी, मुझको इस विषय में कुछ पता नहीं है। तुम्हारे जीजाजी कुछ ज़िकर तो कर रहे थे कि रुपयों की गड़बड़ हुई है, परन्तु यह तब की बात है जब तुम लोग ऊटी गये हुए थे। ऊटी से लौटे दो मास हो रहे हैं। मैंने समझा कि चरणदास ने बात समझा दी होगी। परन्तु यह एकाएक क्या हो गया, इसका मुझे ज्ञान नहीं है।

‘‘मैं अभी क्लब में टेलीफोन कर उनसे बात करती हूँ और फिर तुमसे बात करूँगी। चरण का पता करना तो अत्यावश्यक है।’’

लक्ष्मी ने क्लब में फोन किया। गजराज आया तो लक्ष्मी ने पूछा, ‘‘चरण अभी तक घर नहीं पहुँचा है। क्या किया है आपने उसके साथ?’’

‘‘उसको पाँच वर्ष की कैद से बचा दिया है। वह घर पहुँच जायगा। मैं जानता हूँ, इस समय वह कहाँ पर होगा।’’

‘‘कहाँ है वह?’’

‘‘यह जानने की आवश्यकता नहीं।’’

‘‘उसकी बीवी रो-रोकर पागल हुई जा रही है। उसको भय है कि कहीं अपमान से बचने के लिए वह अपने साथ कुछ कर न बैठे।’’

‘‘तुम कहती हो तो मैं उसको सन्देश भेज देता हूँ और आशा करता हूँ कि एक घण्टे में वह घर पहुँच जायगा।’’

‘‘तो भेज दीजिए। घर आयेगा तो कम-से-कम कुछ विचार तो किया ही जायगा।’’

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