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दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642
आईएसबीएन :9781613010624

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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...

: ४ :

सुमित्रा को अपनी चिन्ता नहीं थी। वह तो अपने पिता के विषय में विचार कर रही थी। उसको अपने माता-पिता की आर्थिक स्थिति के विषय में ज्ञान नहीं था। इससे वह पुनः उसी निर्धनता की अवस्था में चले जाने की आशंका करने लगी थी, जिसे अपने बाल्यकाल में उसने देखा था।

वह घर पर गई तो उसके पिता वहाँ पर नहीं थे। उसे ताँगे में आते देख मोहिनी ने पूछा, ‘‘क्यों, आज फिर मोटर नहीं मिली?’’

‘‘नहीं; पिताजी वहाँ हैं?’’

‘‘वे तो अभी कार्यालय से नहीं लौटे।’’

‘‘परन्तु वहाँ से तो पता चला था कि वे घर आये हैं।’’

‘‘यहाँ तो अभी नहीं पहुँचे।’’

‘‘माँ, एक बहुत बुरा समाचार सुना है?’’

‘‘क्या?’’

‘‘पिताजी का बीमा कम्पनी से काम छूट गया है। उनके स्थान पर कस्तूरीलाल को नियुक्त कर दिया गया है।’’

‘‘मोहिनी इस सबका अर्थ नहीं समझी। उसने पूछ लिया, ‘‘किसने बताया है तुमको यह सब?’’

‘‘कस्तूरीलाल उनके स्थान पर कार्यालय में बैठा था और उसने ही कहा है कि दस हज़ार रुपये के गबन का प्रश्न था। डायरेक्टर उनको पुलिस के हवाले करने वाले थे परन्तु फूफाजी ने कह-सुनकर उनको बचा लिया है।’’

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