लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> दो भद्र पुरुष

दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642
आईएसबीएन :9781613010624

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

377 पाठक हैं

दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...


‘‘हाँ, इसी से तो वह सब तकलीफ भूल गई हूँ, जो इसने आते समय दी थी।’’

शरीफन मुस्करायी तो गजराज भी हँस दिया। उसने कहा, ‘‘इसकी नाक और आँखें तो बिलकुल तुमसे मिलती हैं और माथा मुझसे।’’

‘‘हाँ, मुझको भी कुछ ऐसा ही मालूम होता है।’’

इसके बाद गजराज ने बच्चे को नर्स की गोद में दे दिया। उसने उठते हुए कहा, ‘‘अच्छा, अब मैं चलता हूँ। अब एक मास तक मैं दिल्ली में ही हूँ।’’

‘‘कुछ खर्चे के लिए दे जाइये न!’’

‘‘वह मैं भेज दूँगा अथवा कल स्वयं ही ले आऊँगा।’’

‘‘कुछ तो देते जाइए।’’

गजराज ने बात बदल दी। उसने खड़े-खड़े ही कह दिया, ‘‘अब तुम बच्चे की माँ हो गई हो। इस कारण मैं समझता हूँ कि यह मकान तुम्हारे लिए छोटा रहेगा।’’

‘‘तो कोई बड़ा मकान ले लीजिए।’’

‘‘एक कोठी का प्रबन्ध कर रहा हूँ।’’

‘‘कहाँ?’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book