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धरती और धन
धरती और धन
प्रकाशक :
सरल प्रकाशन |
प्रकाशित वर्ष : 2016 |
पृष्ठ :195
मुखपृष्ठ :
Ebook
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पुस्तक क्रमांक : 7640
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आईएसबीएन :9781613010617 |
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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती। इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।
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फकीरचन्द के पिता का नाम धनराज था। वह म्युनिसिपल कमेटी लाहौर में चुंगी का मुन्शी था। उसका देहान्त तपेदिक से सन् १९२४ में हो गया था। तब वह चालीस रुपया वेतन पाता था।
सन् १९१४ में, जब उसका विवाह हुआ था, धनराज केवल तीस रुपये ही वेतन पाता था। इसपर भी उसके विवाह का प्रबन्ध हो गया। जर्मन और अंग्रेजो के प्रथम युद्ध से पहिले पंजाब में जीवन अति सुलभ था। उस समय तीस रुपये वेतन एक जागीर समझी जाती थी। अतः जब धनराज का विवाह हुआ, तो वह बहुत प्रसन्न था। कूचा कट्ठा सहगल की गली में, एक मकान, जिसमें उसका पिता और बड़ा भाई रहते थे, उसको भी पत्नी के साथ रहने के लिए एक तंग, बिना खिड़की वाला कमरा मिल गया।
जर्मनी से युद्ध हुआ तो वस्तुएँ मँहगी होनी आरम्भ हो गईं। लट्ठा, जो पहले तीन और चार आने गज था, १९१५ में आठ और दस आने गज हो गया। गेहूँ, जो पहिले ढाई रुपये मन था, अब छः और सात रुपये मन बिकने लगा। दूध, जो एक तथा डेढ़ आने सेर था, अब पाँच और छः आना सेर हो गया।
१९१५ में जब फकीरचन्द का जन्म हुआ था धनराज को निर्वाह में कठिनाई अनुभव होने लगी थी।
यह काल था, जब जनता की आवाज़ अधिकारियों तक पहुँच नहीं सकती थी और ईमानदारी, कम वेतनधारियों की कठिनाईयों का ज्ञान अंग्रेज अफसरों को नहीं हो सकता था। अतः उस युद्ध-काल में न तो मँहगाई भत्ते का कोई प्रबन्ध किया गया और न ही किसी प्रकार से वेतन में वृद्धि का आयोजन हुआ।
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