लोगों की राय
उपन्यास >>
धरती और धन
धरती और धन
प्रकाशक :
सरल प्रकाशन |
प्रकाशित वर्ष : 2016 |
पृष्ठ :195
मुखपृष्ठ :
Ebook
|
पुस्तक क्रमांक : 7640
|
आईएसबीएन :9781613010617 |
|
8 पाठकों को प्रिय
270 पाठक हैं
|
बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती। इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।
इतना कहते-कहते उस स्त्री की आँखों में आँसू भर आए। फकीरचन्द ने, माँ के समीप पुनः बिस्तर पर बैठते हुए कहा, ‘‘माँ ! बीती बात को स्मरण करने से क्या लाभ? हमें आगे को देखना चाहिए। राह चलते पीछे को देखने लगे तो ठोकर खाकर गिर भी सकते हैं। माँ ! यदि तुम इस प्रकार करने लगीं तो हम अभी साहस छोड़ बैठेंगे।’’
माँ ने पुत्र की यह बात सुन, अपने आँचल से आँसू पोंछते हुए कहा, ‘‘बेटा ! यह मन की दुर्बलता थी। तुम्हारे पिता का सौम्य मुख स्मरण हो आया था। वे देवता थे, अपने जीवन के अति कठिन समय में भी उनके माथे पर बल पड़ते नहीं देखा। अब वे नहीं है न। अच्छा, अब ऐसी दुर्बलता मन में नहीं आने दूँगी। पता करो न, गाड़ी कब आएगी।’’
वेटिंग रूम में लगी घड़ी देखकर फकीरचन्द ने कहा, ‘‘मैं समझता हूँ कि अब प्लेटफार्म पर चलना चाहिए। दरवाजा तो खुल गया है।’’
‘‘पहले बाबू से तो पूछ लो। बेकार में सामान उठाकर आना जाना ठीक नहीं।’’
वेटिंग रूम के फाटक पर खड़े बाबू से फकीरचन्द ने पूछा, ‘‘बाबूजी ! झाँसी की गाड़ी कब तक आने वाली है?’’
‘‘गाड़ी आने ही वाली है। प्लेटफार्म नम्बर तीन पर चले जाओ।’’
गाड़ी पेशावर से बम्बई जाती थी। इस औरत और इसके दो लड़को को झाँसी जाना था। झाँसी के ढाई टिकट इन्होंने खरीदे हुए थे।
फकीरचन्द ने बिस्तर उठा कँधे पर रख लिया। बिहारी ने ट्रंक, जो छोटा सा था, उठा लिया और माँ ने लोटे को कपड़े के थैले में रख, उसे हाथ में पकड़ लिया। सब प्लेटफार्म की ओर चल पड़े।
...Prev | Next...
मैं उपरोक्त पुस्तक खरीदना चाहता हूँ। भुगतान के लिए मुझे बैंक विवरण भेजें। मेरा डाक का पूर्ण पता निम्न है -
A PHP Error was encountered
Severity: Notice
Message: Undefined index: mxx
Filename: partials/footer.php
Line Number: 7
hellothai