उपन्यास >> प्रारब्ध और पुरुषार्थ प्रारब्ध और पुरुषार्थगुरुदत्त
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प्रथम उपन्यास ‘‘स्वाधीनता के पथ पर’’ से ही ख्याति की सीढ़ियों पर जो चढ़ने लगे कि फिर रुके नहीं।
अकबर को यह बात समझ आई तो उसने कह दिया, ‘‘तो मैं देखता हूँ कि किसी के पास एक टका है अथवा नहीं।’’
इतना कह वह रूमाल में चने बाँध सड़क की ओर चल पड़ा। भटियारिन अपने काम में लीन हो गई और दो पैसे की बात भूल गई।
एक घड़ी लगी घोड़े की नाल लगाने में। करीमखाँ घोड़े की नाल लगवा उसे लगाम से पकड़ सड़क पर ले आया। सड़क पर करीमखाँ से शहंशाह ने कुछ बात कही और वह दो सिपाहियों के साथ दुकान पर आया और लपककर दुकान पर चढ़ लड़की को पकड़ कंधे पर डाल सड़क की ओर भागा।
लड़की ने शोर मचा दिया, ‘‘बचाओ! बचाओ! बाबा! बचाओ!’’
सराय में से तीन-चार व्यक्ति हाथों में तलवारें लिए निकल आए और सड़क पर लड़की को छटपटाते हुए और चीख-पुकार करते हुए देख उधर लपके।
अकबर लड़की को अपने घोड़े पर लाद स्वयं घोड़े पर सवार हो सरपट भागता हुआ चल दिया। उसके सिपाही घोड़ों पर सवार हो शहंशाह के पीछे चल पड़े।
सराय में से निकले लोग हाथों में तलवार लिए लड़की का अपहरण करनेवालों को घोड़े दौड़ाते हुए और अपने पीछे उड़ती धूल छोड़ते हुए देखते रह गए।
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