उपन्यास >> प्रारब्ध और पुरुषार्थ प्रारब्ध और पुरुषार्थगुरुदत्त
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प्रथम उपन्यास ‘‘स्वाधीनता के पथ पर’’ से ही ख्याति की सीढ़ियों पर जो चढ़ने लगे कि फिर रुके नहीं।
अकबर तो लड़की के हाथ-पाँव और शरीर की बनावट को देख रहा था। लड़की ने तराजू के पलड़े को आगे किया और शहंशाह ने जब चनों के लिए रूमाल नहीं निकाला तो लड़की ने कहा, ‘‘यह हैं दो पैसे के चने। बताइए, किसमें लेंगे?’’
‘‘ओह!’’ अकबर ने जेब से एक रेशमी रूमाल निकाला तो लड़की ने समझा कि रूमाल तो बहुत कीमती है। चनों से खराब भी हो सकता है। इस कारण उसने कहा, ‘‘तो इस पर डाल दूँ? परंतु आप तो मेरे मुख को देख रहे हैं।’’
‘‘हाँ! क्या उम्र है तुम्हारी?’’
‘‘तो दो पैसे में यह भी बताना पड़ेगा?’’
‘‘इसके बताने का दाम अलहदा भी दिया जा सकता है।’’
‘‘नहीं। मेरी माँ कहती है कि मैं आगामी कार्तिक में पंद्रह साल की हो जाऊँगी।’’
‘‘और तुम्हारी शादी नहीं हुई?’’
इसका उत्तर लड़की ने नहीं दिया और चने बिछे रेशमी रूमाल पर डाल दो पैसे लेने के लिए हाथ पसार दिया।
अकबर ने जेब से एक स्वर्ण मुहर निकालकर लड़की की ओर बढ़ाई। लड़की मुहर को देखकर बोली, ‘‘इसका बाकी मेरे पास नहीं है।’’
‘‘और मेरे पास इससे कम नहीं हैं।’’
‘‘तो रहने दो।’’
‘‘और चनों के दाम?’’
‘‘फिर कभी इधर आइएगा तो दे दीजिएगा।’’
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