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उपन्यास >> प्रारब्ध और पुरुषार्थ

प्रारब्ध और पुरुषार्थ

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :174
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7611
आईएसबीएन :9781613011102

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प्रथम उपन्यास ‘‘स्वाधीनता के पथ पर’’ से ही ख्याति की सीढ़ियों पर जो चढ़ने लगे कि फिर रुके नहीं।


‘‘और राजरानी नहीं बनाया?’’

‘‘शहंशाह की तीन बेगमें पहले हैं। उनमें एक रकिया बेगम है। वह सबसे बड़ी बेगम है, मगर बाँझ है। इस पर भी वह राजमहल में सब बेगमों से अपने जूते साफ करवाया करती है। जो नहीं करती वह किले की बुर्जी पर चढ़ाकर तीस गज नीचे भूमि पर धकेल दी जाती है और इस तरह मार डाली जाती है।’’

‘‘तो फिर?’’

‘‘इस भले आदमी के साथ भाग जाओ।’’

‘‘कैसे?’’

‘‘जैसे वह कहे।’’

सुंदरी इन सब भयानक संभावनाओं को सुन काँप उठी। उसके माथे पर पसीने की बूँदें चमकने लगीं। इस पर मीना ने कहा, ‘‘तो यह अँगूठी ले लो। इसका मतलब है कि तुम अभी भी अपने को उसकी बीवी मानती हो। तब वह अपनी बीवी को कैद से छुड़ाने के लिए अपनी जान की बाजी लगा देगा।’’

सुंदरी ने अँगूठी उठा दाहिने हाथ की बीच की अंगुली में पहन ली।

मीना ने दीर्घ श्वास लिया और बोली, ‘‘कल मिलूँगी। इस विषय में किसी को कुछ मत बताना।’’

सुंदरी जो स्वप्न ले रही थी राजरानी बनने के, वे विलीन हो गए। उसे समझ आ गया कि एक भटियारिन की लड़की राजरानी तो नहीं, वरन् राजमहल की नीच दासी बन सकती है। दूसरा विकल्प जो मीना ने बताया था कि किसी सैनिक को तोहफे के तौर पर वह दे दी जाएगी। यह तो पहले से भी अधिक भयंकर था।

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