लोगों की राय

उपन्यास >> मैं न मानूँ

मैं न मानूँ

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :230
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7610
आईएसबीएन :9781613010891

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

350 पाठक हैं

मैं न मानूँ...


‘‘तो उसने क्या कहा था?’’

‘‘कहता था कि मुझको चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं है। भगवान जब कामने लगेगा तो दे देगा।’’

‘‘तो मेरी कमाई पर पहले ही ऋण का बोझ लादा जा रहा है?’’

‘‘वह कहता था कि तुमको अपनी प्रैक्टिस चलाने के लिए एक अच्छा मकान और चिकित्सालय चाहिए और उसने तुम्हारे लिए सब प्रबन्ध नीचे की मंजिल पर कर दिया है।’’

‘‘पर पिताजी! मुझको तो यह उम्मीद दिलाई जा रही है कि मुझको कॉलेज में ही नौकरी मिल जाएगी।’’

‘‘सत्य? यह तो बहुत खुशी की बात है। क्या वेतन मिलेगा?’’

‘‘अभी तो कम ही मिलेगा। मगर तरक्की होते-होते दो हजार तक मिलने लगेगा।’’

‘‘ठीक है बेटा! तुम नौकरी कर लेना और कर्ज़ की बात मैं विचार कर लूँगा।’’

लोकनाथ का विचार था कि एक-आध बड़ा-सा ठेका और दिलवा दिया तो बस मकान हज़म हो जाएगा।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book