लोगों की राय

उपन्यास >> सुमति

सुमति

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7598
आईएसबीएन :9781613011331

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

327 पाठक हैं

बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।


कृष्णकान्त ने उत्तर देने की उपेक्षा नलिनी के मुख की ओर देखा, कुछ विचारकर नलिनी बोली, ‘‘नहीं भैया! तुम अब होटल में जाओ में यही ठहरूँगी। कल हम दोनों आपसे मिलने होटल में आएँगे।’’

श्रीपति ने अपनी पत्नी की ओर देखा तो उसने नलिनी की बात का समर्थन कर दिया। अतः दोनों को वहाँ छोड़ श्रीपति पत्नी के साथ अपने होटल में लौट आया।

उनके चले जाने पर कितनी ही देर तक तो दोनों आमने-सामने तख्तों पर निश्चल मौन बैठे रहे। अन्त में नलिनी ने मौन भंग करते हुए पूछा, ‘‘तो यह है आपका घर और उसमें लगा हुआ फर्नीचर?’’

‘‘बात यह है कि नलिनी डियर! तुम्हारे भैया ने न तो कोई दहेज दिया और न कुछ सामान ही। उस शून्य से तो यह स्थिति अच्छी ही है।’’

‘‘मेरे लिए तो घर का सब सामान तैयार था। परन्तु आपने तो कहा था कि आप यहाँ मकान ले ले, तब मैं आऊँ। आपको मकान लेने में विलम्ब करते देख और फिर दिल्ली आने में असमर्थ समझ मुझे स्वयं यहाँ आना पड़ा। मैं तो सब सामान बुक करवाकर लाने वाली थी। समझती हूँ कि नहीं लाई तो ठीक ही किया। इस कमरे में तो दो कुर्सियाँ रखने के लिए भी स्थान नहीं है।’’

‘‘सामान आता तो मैं बड़ा मकान भी ले लेता। साथ ही कुछ धन और उसके साथ ही कुछ वस्त्र भी तो आ जाते। जिस प्रकार तुम कुछ लेकर नहीं आईं उसी प्रकार यहाँ भी कुछ नहीं मिल रहा। इसके अतिरिक्त तुम्हारे लिए यहाँ कोई नौकरी भी नहीं मिल पाई।’’

‘‘तो अब क्या होगा?’’

‘‘अब तुम यहाँ रहो। अपनी माँ से मिले हुए सामान का अनुमान तो तुम्हें है ही। उसके अनुरूप मकान ले लो और फिर सामन भी यहाँ मँगवा लेंगे।’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book