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उपन्यास >> सुमति

सुमति

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7598
आईएसबीएन :9781613011331

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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।

7

नलिनी ने सुमति और अपने पति में हाथा-पाई होती देखी थी। उसे पता चला कि सुमति उसे ढूँढ़ते हुए उसके शयनागार में गई है। उस समय वह भोजनशाला में थी। वैसे उसके पति को उसके भाई और अन्य बधाई देने के लिए आए पुरुषों के पास बैठा होना चाहिए था। श्रीपति मकान के बाहर वाले बरामदे में बैठा सुदर्शन आदि अन्य अभ्यागतों से मिल रहा था। वहाँ खाना-पीना भी हो रहा था।

नलिनी मकान के बैठक-घर में आई तो उसकी माँ ने कहा, ‘‘सुदर्शन जी की पत्नी तुम्हें मिलने तुम्हारे कमरे में गई है।’’ अतः वह उलटे पाँव ही अपने कमरे को लौट गई। वहाँ पहुँच भीतर का दृश्य देख वह स्तब्ध खड़ी रह गई।

कृष्णकान्त ने सुमति की कलाई पकड़ी हुई थी और सुमति उसकी बाँह पर काट रही थी। कृष्णकान्त चिचियाता हुआ उसे पीछे हटा रहा था।, परन्तु सुमति के दाँत उसकी बाँह में गहरे गड़ चुके थे। नलिनी ने देखा था कि रक्त की बूँदें भूमि पर गिर रही हैं। इस पर तो नलिनी भागती हुई कमरे में आई और ‘अरे, अरे’ कहती हुई अपने पति और सुमति के मध्य आ दोनों को पृथक् करने लगी। कृष्णकान्त की पकड़ पहले ही ढीली हो चुकी थी। यह तो सुमति इस झुड़प का उसके हाथ पर स्थायी चिह्न छोड़ने के विचार से उसे और अधिक ज़ोर से काट रही थी। नलिनी को आया देख उसने भी अपने दाँतों को ढीला किया तो कृष्णकान्त हाथ को पकड़ चिचियाता हुआ पलंग लेट गया।

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