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उपन्यास >>
सुमति
सुमति
प्रकाशक :
सरल प्रकाशन |
प्रकाशित वर्ष : 2016 |
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ :
ईपुस्तक
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पुस्तक क्रमांक : 7598
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आईएसबीएन :9781613011331 |
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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
नलिनी के चरित्र के विषय में चर्चा चलती रहती थी। तदापि सुदर्शन को उसके चरित्र के विषय में किसी विशेष बात का ज्ञान नहीं था, जिससे कि वह उनके अन्य परिचितों को उसके नाम पर नाक चढ़ाने का कोई कारण समझता। हाँ, वह सदा प्रेम, विवाहित जीवन, पति-पत्नी के सम्बन्धों के विषय में बातें करती रहती थी। अंग्रेजी की अध्यापिका होने से वह अमेरिकन उपन्यास पढ़ने में बहुत रुचि रखती थी। यदि कभी सुदर्शन उसके हाथ से कोई उपन्यास देखने का यत्न करता तो वह उसके हाथ से छीन लेती और मुस्करा देती थी।
यों तो वह अच्छी-खासी सुन्दर थी और बनाव-श्रृंगार इस प्रकार करती थी कि कभी बन-ठनकर कनॉट-प्लेस में निकल जाती तो युवक घूरकर उसको देखने लग जाते थे। एक समय तो सुदर्शन भी उसकी चमक-दमक के प्रभाव में आ गया था, परन्तु यह बात सुमति को देखने से पूर्व की थी।
सुदर्शनलाल का पिता कश्मीरीलाल युद्ध के पूर्व चाँदनीचौक में एक छोटी-सी बिसाती की दुकान करता था। युद्ध के दिनों में वस्तुओं के मूल्य बढ़ जाने से उसको भारी लाभ हुआ था। वह अपने पूर्ण लाभ को पूँजी में परिवर्तित करता गया और ज्योंही युद्ध समाप्ति के लक्षण दृष्टिगोचर हुए, अपने सारे माल को बेंचकर वह लखपति बन गया। प्रथम विश्व-युद्ध के उपरान्त कई व्यापारियों के दिवाले निकलने की घटनाएँ उसने सुन रखी थीं। इसी कारण युद्ध बन्द होने के लक्षण देख, वस्तुओं के मूल्य में कमी आने का अनुमान लगा, उसने पहले ही सब सामान बेच, रुपया नकद कर लिया था।
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