लोगों की राय

उपन्यास >> सुमति

सुमति

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7598
आईएसबीएन :9781613011331

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

327 पाठक हैं

बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।


‘‘बिलकुल नहीं।’’ सुदर्शन का कहना था।

‘‘तो सुनो। न सूँघी गई कली, अछूता कोमल पल्लव, न बिधा गया रत्न, न चखा गया मधु। ऐसा पुण्यफल जिसका भोग न हुआ हो। वह किसके पुण्यों का फल है? भैया! इसका निर्णय तुमको करना है।’’

बहुत बातें बनाना सीख गई हो निष्ठा। इतना कुछ कह गई हो, परन्तु कुछ भी तो सिर-पैर पता नहीं चला।’’

‘‘तो और सुनो–’’

अलभ्यमान है देह पतली अति न्यारी,
लता प्रयंगु समान है लगती अति प्यारी।
भय आतुर हिरणी-सी आँखें अति सुन्दर,
चितवन भरती मोद सदा मन के अन्दर।
पूर्ण शशि-सा उज्ज्वल केश मयूर समान,
नदी की लहरों सी भौंहें तनी कमान।


‘‘कुछ-कुछ समझ में आने लगा है।’’ प्रोफेसर भैया बोल उठा।

बस सगाई हुई और विवाह की तिथि निश्चित हो गई। सुदर्शन उसके सौंदर्य का बखान सुन और तदनन्तर उसे स्वयं देख इतना मुग्ध हुआ था कि वह उसके विषय में और अधिक जानकारी प्राप्त करना भूल ही गया था।

आज भी, जब विवाह का केवल एक सप्ताह शेष रह गया था, उस निमन्त्रण-पत्र को, जो उसके पिता ने छपवाए थे और सम्बन्धियों तथा मित्रों में वितरित करने के लिए मेज़ पर रखे थे, पढ़कर, न सूँघे गए पुष्प की कल्पना कर वह प्रफुल्लित हो उठा था।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book