उपन्यास >> सुमति सुमतिगुरुदत्त
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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
सुमति ने इसका उत्तर नहीं दिया। वह चुप ही रही। परन्तु उसके मुख पर चलने वाला रक्त का दौर उसके मन के भावों को विश्वलेषण कर रहा था। सुदर्शन की माँ उस समय तो चुप रही, क्योंकि परिवार के सभी व्यक्ति वहीं पर बैठे थे, किन्तु उसने सुमति से पृथक् में बात करने का निश्चय कर लिया।
सुमति से बात के पूर्व ही कश्मीरीलाल और कल्याणी के मध्य इस विषय में विचार-विमर्श हुआ। कश्मीरीलाल ने अपनी पत्नी से पूछा, ‘‘क्या अभिप्राय हो सकता है सुमति के कथन का?’’
‘‘क्या कहने का?’’
‘‘उसने कहा है न कि उसका अपने पति के कमरे में सोने को मन नहीं करता।’’
बात टालने के लिए कल्याणी ने कह दिया, ‘‘वह बच्चे को नौकरानी की देख-रेख में छोड़ना नहीं चाहती।’’
‘‘मैं तो कुछ और ही समझा हूँ।’’
‘‘क्या?’’
‘‘मेरा अनुमान है कि उसे अपने पति की निष्ठा में सन्देह हो गया है।’’
‘‘उसके मन की बात तो भगवान् ही जान सकता है। हाँ, मैं सुदर्शन को न तो इतना मूर्ख मानती हूँ और न ही नलिनी के व्यवहार में मैंने किसी प्रकार की अनियमितता देखी है। कभी-कभी तो मैं रात में उठकर उसके कमरे में झाँक भी आया करती हूँ। वह गहरी नींद में सोई हुई होती है।’’
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