लोगों की राय

उपन्यास >> बनवासी

बनवासी

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :253
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7597
आईएसबीएन :9781613010402

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

410 पाठक हैं

नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...


‘‘तुम उसका पता पूछ लेना और यह कह देना कि अवसर मिलने पर हम उसके नगर में जाएँगे।’’

इस प्रकार बात तय हो गई और अगले दिन जब सोना अपनी मालकिन के साथ सम्मेलन में आई तो बिन्दू नें स्टीवनसन को बता दिया। स्टीवनसन मिसेज़ माइकल को जानता था। वे प्रचार-कार्य के लिए सरकारी कर्मचारियों से बहुत धन एकत्रित किया करती थीं। अंग्रेज़ी सैनिक विभाग से भी उस क्षेत्र में बहुत सहायता दिलवाया करती थीं। स्टीवनसन जब भी लुमडिंग में जाया करता था, मिसेज़ माइकल से मिला करता था।

इस कारण बिन्दू के संकेत करने पर वह मिसेज़ माइकल से जाकर मिलने लगा। बिन्दू देख रही थी कि सोना ने उसे पहचाना नहीं। उसकी पूर्ण रूपरेखा बदल चुकी थी। वह यूरोपियन पोशाक में थी और उसके सिर के बाल कट चुके थे। इसके अतिरिक्त उसने पाउडर और लिपस्टिक का भी प्रयोग किया हुआ था।

बिन्दू ने सोना के सामने खड़ी हो आवाज़ दी, ‘‘मौसी!’’

सोना ने सामने खड़ी यूरोपियन लड़की को अपनी भाषा में उसको मौसी कहकर पुकारते सुना तो ध्यान से देखने लगी। वह पहचान गई। पहचानते ही दोनों गले मिलने लगीं। सोना ने पूछा, ‘‘बिन्दू! बड़ौज कहाँ है?’’

‘‘घर पर है।’’

‘‘कहाँ बनाया है घर?’’

इस पर दोनों लॉबी की बैंच पर बैठ गईं और बिन्दू ने अपने भागने से लेकर उस दिन तक की पूर्ण कथा बता दी। केवल अपने स्टीवनसन से सम्बन्ध की बात उसने नहीं बताई।

सोना ने पूछा, ‘‘तो बड़ौज को साथ क्यों नहीं लाई?’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book