लोगों की राय

उपन्यास >> बनवासी

बनवासी

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :253
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7597
आईएसबीएन :9781613010402

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

410 पाठक हैं

नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...


‘‘कौन कहता है, तुम चौकीदार हो! हमें तो कोई चोर मालूम देते हो।’’

‘‘चोर? मैं! तो पुलिस में जाना पड़ेगा?’’

‘‘पुलिस में जाने की ज़रूरत नहीं। यहाँ तुमको कोई जानता है? चलो उन बंगले वालो से पुछवा दो कि तुम चौकीदार हो। अरे भाई! चौकीदार होते तो रात को यहाँ मौजूद होते। हमने तो परसों तुमको कुल्लू में घूमते देखा था।’’

चौकीदार भौंचक्का हो मुख देखता रह गया। फिर कुछ विचार कर बोला, ‘‘चलिए स्टीवनसन साहब की मेम मुझको बहुत अच्छी तरह जानती हैं, मैं उनसे पुछवा दूँ।’’

‘‘तो, क्या साहब नहीं जानते?’’

‘‘जानते तो वे भी हैं, पर कुछ तेज़ मिज़ाज हैं और नहीं कह सकते कि कब लट्ठ लेकर पीछे पड़ जाएँ।’’

‘‘ओह! तो वे अपनी मेमसाहब पर भी लट्ठ लेके पीछे पड़ते होंगे?’’

‘‘वे बेचारी बहुत ही भली औरत हैं। आपने उनके बच्चों को देखा है, बहुत ही सुन्दर और मधुर बोलते हैं।’’

‘‘होगें। मैंने बच्चे नहीं देखे।’’ उसने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘देखो रहीम! तुमको तालों की मूल्य दे दूँगा और इनाम भी दूँगा। कल सायंकाल जब मैं आया तो द्वार बन्द देख परेशान था। यहाँ कोई रहने की दूसरी जगह नहीं। स्टीवनसन से मेरा परिचय नहीं था। इसलिए ताला तोड़कर सो गया। अच्छा एक घण्टे में मैं स्टीवनसन साहब के साथ स्केटिंग के लिए जा रहा हूँ, तुम भी चलना। तुमको इनाम दूँगा। तुम मुझे स्केटिंग करना सिखाना।’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book