लोगों की राय

उपन्यास >> बनवासी

बनवासी

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :253
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7597
आईएसबीएन :9781613010402

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

410 पाठक हैं

नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...


‘‘मैंने सायंकाल साधु से जाकर पूछा। उसने कहा कि वह तब तक इसकी घोषणा नहीं करेगा जब तक कि बिन्दू उससे विवाह करने के लिए राजी नहीं हो जाती। मैंने उससे कहा कि यह तो अधर्म हो रहा है। इससे मैं अगले दिन बुलाकर उसको पंचायत के सम्मुख उपस्थित करूँगा। इस बात से भयभीत उसने अपना छुरा निकालना चाहा। मैं उसकी इस नीयत को समझकर वहाँ से चला आया। वह मेरे पीछे-पीछे आकर मुझ पर वार कर बैठा। मैं सँभल गया और अपना छुरा निकाल उस पर लपका। वह असावधानी में फिसल गया और मेरे छुरे पर गिर पड़ा। मैंने उसका शव उठाया और नदी में बहा दिया।’’

‘‘रक्त दो स्थानों पर देखा गया है।’’

‘‘वह इसलिए कि जब मैं उसका शव उठाकर ले जा रहा था तो अपने घाव के कारण थक गया और साँस लेने के लिए मैंने उस स्थान पर विश्राम किया था।’’

‘‘परन्तु शव को बहाने की क्या आवश्यकता थी?’’

‘‘मैं उसको मारना नहीं चाहता था। मैं तो अपना ही बचाव कर रहा था, किन्तु वह मरा तो है मेरे छुरे पर स्वयमेव फिसलकर गिरने से। मैं चौधरी हूँ और मैंने उसके शव को बहा दिया है।’’

‘‘कोई साक्षी है?’’

‘‘झगड़े और लड़ाई का कोई साक्षी नहीं है।’’

‘‘और किस बात का है?’’

‘‘बिन्दू के आने और घोषणा सम्बन्धी बात कहने का।’’

‘‘कौन है?’’

‘‘मेरी पत्नी सोना।’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book