उपन्यास >> बनवासी बनवासीगुरुदत्त
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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...
‘‘हाँ, वह विवाहने योग्य हो गई है। साधु के मन में कुछ मैल प्रतीत होता है। उसके विषय में वह भगवान का आदेश सुनाता ही नहीं।’’
‘‘वह बड़ौज से विवाह करना चाहती है।’’
‘‘सच?’’
‘‘वह मुझको कह गई है।’’
‘‘कल बड़ौज से पूछकर मैं साधु से बात करूँगा।’’
‘‘हाँ, उस गौ का उद्धार कर दो!’’
बात रात को ही हो गई। साधु आया और विवाह से पूर्व ही बिन्दू और बड़ौज के परस्पर मिलने की बात करने लगा। चौधरी ने कह दिया, ‘‘साधु लड़की सज्ञान हो गई है, उसके विषय में भगवान का आदेश सुना दो! और फिर वह बड़ौज से विवाह कर लेगी।’’
‘‘क्या दोगे?’’
‘‘क्या चाहते हो?’’
‘‘पचास रुपये!’’
इतने में बड़ौज वहाँ आ गया और झगड़ा हो गया। साधु गया तो चौधरी उसके पीछे-पीछे उसे समझाने के लिए चला गया। बड़ौज को सन्देह था कि झगड़ा होगा। इस कारण वह भी अपना छुरा निकालकर उसके पीछे चल पड़ा। दोनों नदी के किनारे खड़े हो गए। चौधरी ने पूछा, ‘‘यहाँ किसलिए आए हो?’’
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