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उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
‘‘अब तो आठ बज रहे हैं और आपको नौ बजे दुकान पर पहुँचना है। अगर कल मेरे साथ चार बजे उठे तो आपको बता दूँगी।’’
‘‘ठीक है। मैं आज एक अलार्म वाला ‘टाईम पीस’ ले आऊँगा और तुम्हारे साथ ही उठने की कोशिश करूँगा।’’
अगले दिन जब अलार्म बजने लगा तो यासीन विवश आँखें मलता हुआ उठा और फिर स्नानादि से अवकाश पा प्रज्ञा के साथ पूजागृह में चला गया। इस प्रकार अब वहाँ एक के स्थान दो प्राणी पूजा में जुष्ट होने लगे।
प्रज्ञा ने पति को एक सरल और छोटा-सा मन्त्र लिखाया। मुहम्मद यासीन ने लिखा–
‘ओं भूः, ओं भूवः, ओं स्वः, ओं महः, ओं जनः, ओं तपः, ओं सत्यम्।।’
इसके नीचे प्रज्ञा ने इसके अर्थ लिखा लिए—‘‘खुदा ज़माना-ए-मा जी है। खुदा ज़मानाए हाल है और खुदा मुस्तकबिल है। वह बहुत बड़ा है। सब को उत्पन्न करने वाला है। वह हमें मेहनत की ताकन देनेवाला है।
वह सत्य है।’’
जब मुहम्मद यासीन लिख चुका तो उसने पूछा, ‘आगे।’’
‘‘बस, और कुछ नहीं। इसमें सब-कुछ आ गया है।’’
‘‘मगर इसमें खुदा से कुछ माँगा तो है नहीं?’’
‘‘माँगने से कुछ नहीं मिलता। माँगने से तो भीख भी नहीं मिलती।’’
‘‘तो फिर इसका क्या फायदा है?’’
‘‘आज इसको आप याद कर लीजिए और समझ लीजिए। फायदा बाद में बताऊँगी।’’
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