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उपन्यास >> नास्तिक

नास्तिक

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :433
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7596
आईएसबीएन :9781613011027

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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...


‘‘तब ठीक है।’

‘‘मगर,’’ हमीदा ने कह दिया, ‘‘नगीना तो इस डॉक्टर के जर-असर आ गई मालूम होती है।’’

‘‘क्यों, क्या हुआ है?’’

‘‘हुआ नहीं, पर हो सकता है। वह यह कि दोनों की शादी हो सकती है।’’

‘‘मगर उसे तो मैंने मुहम्मद यासीन के लिए चुना हुआ है।’’

‘‘यह नहीं हो सकेगा।’’

‘‘क्यों?’’

‘‘कह नहीं सकती। नगीना उसे भाईजान कहती है और उसे ऐसा ही समझती है।’’

‘‘मैं इसके लिए कोशिश करूँगा। जब उसकी, बीबी चौथे-पाँचवें महीने में जायेगी तो उसकी नगीना से शादी हो सकेगी।’’

‘‘करिये! नहीं तो यह काफिर का बच्चा उसे उड़ा ले जायेगा। वह उसे कह रहा था कि उसके मुख पर खुदाई नूर बरसता है। इसलिये वह अपने सब भाई-बहनों से ज्यादा खूबसूरत मालूम होती है।’’

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