उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
मैत्रेयी अपने कथन का युक्तियुक्त विश्लेषण सुन प्रसन्न थी, परन्तु इस विश्लेषण का अन्त धूर्त शब्द में सुन लज्जित अनुभव करती हुई बोली, ‘‘क्षमा करें। जब हम युक्ति करते हैं तो कभी कठोर शब्द मुख से निकल जाने असम्भव नहीं। परन्तु मैं आपका ऐसा न होना सिद्ध होने पर प्रसन्न ही हूंगी।’’
‘‘तो मैत्रेयी जी! सुनिये। मैं जब भारत के अधिकारियों से मिला था तो मेरे मन पर यह बात बिठा दी गई थी कि चिन्ता की कोई बात नहीं है, चीन से हमारे विचार और हमारी भावनायें समान हैं, चीन के अधिकारी यह जानते हैं; इस कारण युद्ध की तो दूर की भी सम्भावना नहीं। विदेश विभाग के प्रवक्ता ने यह बात मेरे मन पर अंकित करने का यत्न किया था कि भारत यद्यपि पूर्णरूप से अभी कम्युनिस्ट नहीं; इस पर भी यह कम्युनिज्म के मार्ग पर चल रहा है। यह सर्वविदित है। इस कारण कोई भी कम्युनिस्ट देश भारत से द्वेष नहीं कर सकता। कम्युनिज़्म एक मज़हब है और हम-मज़हब परस्पर कभी नहीं लड़ते।
‘‘रही बात पाकिस्तान की। वह सैनिक दृष्टि से अति दुर्बल है और वह हम पर आक्रमण नहीं करेगा।
‘‘इन्हीं विचारों को लेकर मैं पाकिस्तान और चीन गया था, परन्तु वहाँ जाकर और वहाँ की परिस्थिति को समझ मेरा भारत में बना विचार बदल गया है। चीन भारत की बहुत-सी भूमि पर अधिकार करने की तैयारी कर रहा है। इस समय बीस से अधिक डिवीज़न सेना भारत की सीमा पर एकत्रित है और भारत पर आक्रमण की तैयारी में संलग्न है। चीन कम से कम ‘‘ड्यूरेण्ड’’ और ‘मेकमोहन’’ रेखा को सीमा नहीं मानता और प्रथम अवसर मिलते ही उस रेखा को पार कर हिमालय से दक्षिण की ओर अपनी चौकियां बनाना चाहता है। इससे दोनों देशों में झड़प होगी। भारत का हित ‘‘ड्यूरैण्ड’’ और ‘‘मेकमोहन लाईन’’ तक अधिकार रखने से ही सिद्ध होता है।
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