उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
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यात्रा समाप्त हुई। पालम हवाई पत्तन पर पहुंचे तो तेजकृष्ण ने पूछ लिया, ‘‘आपका सामान छुड़ाने का कार्ड है क्या?’’
‘‘हाँ! एक सूटकेस है।’’ इतना कुछ ही तेजकृष्ण का सामान था। तेज ने दोनों कार्ड लिए और पत्तन से बाहर को चल पड़ा। रेलिंग के पास उसकी माँ यशोदा खड़ी थी। उसने अपने से पांच इंच ऊँचे अपने पुत्र की पीठ पर हाथ फेर प्यार दे पूछा, ‘‘तेज! पिताजी कैसे है?’’
‘‘सदा की भाँति प्रसन्न, सन्तुष्ट और धनोपार्जन में व्यस्त हैं। वह तुम्हें अपनी ‘गुड विशेज़’ भेजते हैं।’’
माँ मुस्करायी। तेज ने लड़की का माँ से परिचय करा दिया। उसने कहां ‘‘यह हैं कुमारी मैत्रेयी। मैंने इनको दिल्ली में तुम्हारे साथ घर पर रहने का निमन्त्रण दिया है। यह इन्होंने स्वीकार कर दिया है। माँ! अपनी गाड़ी में आयी हो न?’’
‘‘हां! किसलिए पूछ रहे हो?’’
‘‘इनको तुम्हारी गाड़ी की आवश्यकता रहेगी। इनकी माताजी यहां विलिंगडन हस्पताल में बीमार पड़ी हैं।’’
माँ को समझ आया कि यह लड़की तेज की प्रस्तावित पत्नी है और परिचय कराने के लिए उसके पास ठहराने का प्रबन्ध कर रहा है। इस कारण उसने मुस्कराते हुए लड़की की ओर देखा और कहा, ‘‘आओ बेटी! तेज तुम्हारा सामान छुड़वा रहा है और हम बाहर गाड़ी पर चलकर प्रतीक्षा करते हैं।’’
इस पर तेज ने कह दिया, ‘‘कदाचित् कस्टम वाले सूटकेस के भीतर देखना चाहेंगे।’’
इस पर मैत्रेयी ने कह दिया, ‘‘उसमें पहनने के कपड़ों के अतिरिक्त कुछ नहीं। आप दिखा सकते हैं।’’ इतना कह उसने सूटकेस की चाबी दे दी।
यशोदा मैत्रेयी को लेकर पत्तन के बाहर चल पड़ी। कुछ बात करने के लिए ही यशोदा ने पूछ लिया, ‘‘लंदन में क्या करती हो?’’
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