उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘‘मेरी माता जी रावलपिण्डी की रहने वाली हैं। पिता जी जालन्धर के एक विख्यात विद्वान् पण्डित राधाचरण थे। देश-विभाजन से पहले उनका देहान्त हो चुका था। माता जी पहले चण्डीगढ़ में रहती रहीं। वहां ही मेरी शिक्षा-दीक्षा हुई है। जब मैं ऑक्सफोर्ड को आयी तो माँ हरिद्वार में रहने गयी थीं। अब एकाएक समाचार मिला है कि वह बीमार है और दिल्ली के विलिंगडन अस्पताल में है।’’
‘‘तो दिल्ली में आप कहाँ ठहरेंगी?’’
‘‘यह तो दिल्ली में चलकर निश्चय करूंगी। पहले किसी होटल में ठहरने का विचार कर रही हूं। परन्तु उससे भी पहले तो माँ को मिलने हस्पताल जाऊंगी।’’
‘‘यदि आप स्वीकार करें तो इसमें मैं आपकी सहायता कर सकता हूं।’’
‘‘क्या सहायता कर सकते हैं?’’
‘‘मसलन, मैं हवाई पत्तन से आपकी सवारी का प्रबन्ध कर सकता हूं। अपनी माँ के पास आप का दिल्ली में ठहरने का प्रबन्ध कर सकता हूं और फिर आपको अपनी ही गाड़ी में हस्पताल आने-जाने का प्रबन्ध कर सकता हूं।’’
‘‘तो आपकी माता जी दिल्ली में रहती हैं?’’
‘‘हां। वह पिता जी के पास केवल मई, जून, जुलाई और अगस्त में आया करती हैं। शेष महीनों में उनको लन्दन की जलवायु अनुकूल नहीं बैठती। पिता जी अपना व्यवसाय लन्दन में बैठे-बैठे ही कर सकते हैं। चैरिंग क्रास पर उनका कार्यालय है। वह नित्य वहां आते हैं और सायंकाल घर को लौट जाते हैं। वह अपने व्यवसाय का त्याग नहीं कर सकते। मैं लन्दन में होता हूं तो पिता जी के पास रहता हूं और जब दिल्ली में होता हूं तो माता जी के पास रहता हूं। अन्य स्थानों पर तो होटलों में रहना होता है।
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