उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘‘उन्होंने कहा था, इससे धन मिलता है जिससे तुम खाते-पहनते और सैर-सपाटे करते हो।
‘‘मैंने पिताजी से पूछा, और वह औरत कौन है जो बगल के कमरे में बैठी है?
‘‘इस पर पिताजी ने मुख पर अंगुली रख कान में कुछ फुसफुसा दिया। मुझे कुछ ऐसा समझ में आया कि उस स्त्री का नाम राज्यलक्ष्मी है। वह हम सबको देती है, परन्तु उसके अपने लिए कुछ नहीं है।’’
‘‘तेज!’’ बालक का नाम तेजकृष्ण था। माँ ने लड़के को सम्बोधन कर कहा, ‘‘यह सब तुम कहाँ से सुन आये हो?’’
‘‘माँ! सुना नहीं, रात सोये-सोये देखा है।’’
‘‘ओह...तो तुम स्वप्न देखते रहे हो। तेज! रात को मुँह-हाथ धोकर सोया करो। स्वप्न देखना ठीक नहीं। इससे मस्तिष्क खराब हो जाता है और फिर पढ़ाई लिखाई नहीं हो सकेगी।’’
तेज की माँ यशोदा यह बता रही थी कि टेलीफोन की घंटी बजी। वह लपक कर उठी और टेलीफोन सुनने लगी।
तेजकृष्ण अभी-अभी स्कूल से लौटा था और पिछली रात देखे स्वप्न का अर्थ पूछने वाला था। परंतु माँ ने डांट दिया। वह अभी और डांटने वाली थी कि टेलीफोन की घण्टी बज उठी।
तेजकृष्ण की एक छोटी बहन थी। नाम था शकुन्तला। वह अभी स्कूल नहीं जाती थी, परन्तु माता और भाई में हो रहा वार्तालाप सुन रही थी और अपनी बाल बुद्धि से समझने का यत्न कर रही थी। जब माँ टेलीफोन सुनने गई तो बच्चे भी माँ के समीप जा खड़े हुए।
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