मूल्य रहित पुस्तकें >> श्रीरामचरितमानस (उत्तरकाण्ड) श्रीरामचरितमानस (उत्तरकाण्ड)गोस्वामी तुलसीदास
|
8 पाठकों को प्रिय 234 पाठक हैं |
वैसे तो रामचरितमानस की कथा में तत्त्वज्ञान यत्र-तत्र-सर्वत्र फैला हुआ है परन्तु उत्तरकाण्ड में तो तुलसी के ज्ञान की छटा ही अद्भुत है। बड़े ही सरल और नम्र विधि से तुलसीदास साधकों को प्रभुज्ञान का अमृत पिलाते हैं।
सब कें गृह गृह होहिं पुराना। राम चरित पावन बिधि नाना।।
नर अरु नारि राम गुन गानहिं। करहिं दिवस निसि जात न जानहिं।।4।।
नर अरु नारि राम गुन गानहिं। करहिं दिवस निसि जात न जानहिं।।4।।
सबके यहाँ घर-में पुराणों और अनेक प्रकार के
पवित्र रामचरित्रों की कथा होती है। पुरुष और स्त्री सभी
श्रीरामचन्द्रजी का गुणगान करते हैं और इस
आनन्दमें दिन-रातका बीतना भी नहीं जान पाते।।4।।
दो.-अवधपुरी बासिन्ह कर सुख संपदा समाज।
सहस सेष नहिं कहि सकहिं जहँ नृप राम बिराज।।26।।
सहस सेष नहिं कहि सकहिं जहँ नृप राम बिराज।।26।।
जहाँ भगवान् श्रीरामचन्द्रजी स्वयं राजा होकर
विराजमान हैं, उस अवधपुरी के निवासियों के सुख-सम्पत्ति के सुमुदायका
वर्णन हजारों शेषजी भी नहीं कर सकते।।26।।
चौ.-नारदादि सनकादि मुनीसा। दरसन लागि कोसलाधीसा।।
दिन प्रति सकल अजोध्या आवहिं। देखि नगरु बिरागु बिसरावहिं।।1।।
दिन प्रति सकल अजोध्या आवहिं। देखि नगरु बिरागु बिसरावहिं।।1।।
नारद आदि और सनक आदि मुनीश्वर सब कोसलराज
श्रीरामजीके दर्शनके लिये
प्रतिदिन अयोध्या आते हैं और उस [दिव्य] नगरको देखकर वैराग्य भुला देते
हैं।।1।।
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book