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उपन्यास >> न जाने कहाँ कहाँ

न जाने कहाँ कहाँ

आशापूर्णा देवी

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2012
पृष्ठ :138
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2100
आईएसबीएन :9788126340842

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ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित लेखिका श्रीमती आशापूर्णा देवी जी का एक और उपन्यास

 

8


बात सुनते ही दिव्यजीवन के हाथ में पकड़ी चाय की प्याली छलक गयी। बोल उठा, “माई गॉड ! कह क्या रही होऐं?"

अवहेलनापूर्ण ढंग से चैताली बोली, “इसमें इतना अवाक् होने की क्या बात है? ऐसी घटना ज़िन्दगी में पहली बार सुन रहे हो क्या?"

पत्नी जब इस तरह झिड़कते हुए प्रश्न पूछती है तब न जाने क्यों दिव्य सिकुड़कर इतना-सा हो जाता है। इस वक्त भी उसका यही हाल हुआ। प्रश्न का जवाब भी देना पड़ेगा। इसीलिए अप्रतिभ हँसी हँसकर बोला, “नहीं, ऐसा हो तो अक्सर रहा है परन्तु तुम्हारी कंकनादी का मामला है इसीलिए सुना था उन्होंने तो पूरे घर में तहलका मचा कर, विद्रोह की घोषणा करते हुए अपने प्रेमी पुरुष के गले में वरमाला पहनायी थी?"

“हाँ पहनायी थी। मुझसे ही तुमने सुना था। तो क्या कभी वरमाला डाली थी इसीलिए आजीवन काल उसी गले को पकड़कर झूलती रहें !'।

“क्या है कि यह तो सही कह रही हो। लेकिन पाँच लोग क्या कहेंगे? है न? ऐसी ही मामूली-सी शादी हुई होती तो और बात थी।"

“कहेगा कोई क्या?' चैताली ने फिर गले की आवाज़ चढ़ाते हुए कहा, “और किसी के कहने की परवाह कौन कर रहा है ! आजकल तो डाइवोर्स स्टेटॅस सिम्बल है।"

दिव्य का मुँह अनजाने में ही खुल गया, “क्या डाइवोर्स एक स्टेटॅस सिम्बल है?"

“अवश्य। हमेशा एक ही खूटी से बँधे रहकर सुख से चारा-भूसी खाना पड़ेगा यह किसने कहा है? हर एक का निजी एक व्यक्तित्व होता है। इस बात को डाइवोर्स ही सिद्ध करता है।”।

दिव्य को लगा यह सारी बातें अभी-अभी चैताली अपनी बहन कंकनादी से सनकर आयी है। मौसेरी बहन कंकनादी तो उसकी 'आदर्श' हैं"उनका एक-एक आचरण चैताली के लिए अनुकरणीय है। कंकनादी का बोलने का बेपरवाह ढंग, बेरोकटोक बेझिझक की गयी प्रेमलीला, उनका जीवन-निर्वाह करने का विशेष ढंग... सब कुछ तो चैताली के लिए विस्मयकारी और आकर्षणीय है।

और कंकनादी के पति? वे भी तो किसी से कुछ कम नहीं थे।

उनके आगे तो प्रायः चैताली हीन भावना से ग्रस्त हो जाती थी। माँ-बाप द्वारा तय की गयी शादी और कूपमण्डूक ससुराल ने तो उसे कहीं का नहीं रखा।

इधर कुछ दिनों से चैताली पति और पतिगृह वासियों को कंकनादी के जीवन की कोई नयी बात नहीं सुना पायी थी। हर बात पुरानी हो गयी थी जैसे कंकनादी हर शाम को पति और उनके मित्रों के साथ चाय-कॉफी पीने की तरह ड्रिंक किया करती है कंकनादी लोकनिन्दा की परवाह थोड़े ही करती है। कंकनादी स्वयं मोटर चलाकर बगल में पति के मित्र को बैठाकर 'टाटानगर' चली जाती है 'तोपचॉची' चली जाती है।

कंकनादी में किसी तरह का कोई कुसंस्कार नहीं है। वह तो अपने इकलौते बेटे को पाँच साल की उम्र ही में हॉस्टल में रख आयी है जिससे लडका बाद में घर घुसना न हो जाये।

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