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वात्स्यायन का कामसूत्र

महर्षि वात्स्यायन

प्रकाशक : श्रंगार पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :395
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2098
आईएसबीएन :1234567890

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सुविधाजनक चित्रों सहित - कामसूत्र का एक सरल संस्करण

दो शब्द

यह तो संभव है कि जीव मोह-माया के बंधन में बंधकर ईश्वर को भूल जाए, परंतु यह कदापि संभव नहीं है कि ईश्वर एक क्षण के लिए भी किसी को भूल सके। वह कभी भी दया भाव नहीं छोड़ता। सदा अपनी कृपा का अमृतमय हाथ हमारे सिर पर रखे रहता है। वह सृष्टि का परम-पिता है। ब्रह्मा से लेकर मक्खी-मच्छर तक सब उसकी संतान हैं। वह सबका हित चिंतन करने वाला है। उसे अपनी अच्छी-बुरी सभी संतानों का ध्यान है।

वही परम-ब्रह्म परमेश्वर अपने परम-प्रिय ऋषि-मुनियों द्वारा अपने दिव्य संदेश सबको सुनवाता है। कई बार स्वयं प्रकट होकर उपदेश देता है। संसार के जिस भी प्राणी ने उसकी आज्ञा का पालन किया, ऋषि-मुनियों के अमर वाक्यों पर विश्वास करके अपना पथ सुधार लिया, उसके दोनों लोक सुधर गए। वे प्रकृति के आवरण को भेदकर परम-पद को प्राप्त हो गए।

जिसने उसके आदेशों को नहीं माना, उसके भेजे हुए संदेश का आदर नहीं किया, वे पुरुष दुर्गति के भाजन हुए। उनके दोनों लोक बिगड़ गए।

पुरुषार्थ चार प्रकार के हैं

चार प्रकार के पुरुषार्थ हैं—धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष। इस संसार में किसी को भी देख लीजिए। इन चारों पुरुषार्थों में जो भी जिसे प्रिय लगता है या जिसकी उसे आवश्यकता होती है, वह उसी को पूरा करने के प्रयास में लगा हुआ है।

धर्म ने महाराजा हरिश्चंद्र को श्मशान का सिपाही बना दिया। महाराज युधिष्ठिर को नंगे पांव वन फिराया। पुण्य के लोभ ने कई स्त्रियों को सती बना डाला। उन्हें जलती हुई अग्नि में जल जाने के लिए प्रेरित किया। उनकी कहानियां आज भी भारतीयों के रक्त को खौला देती हैं।

अर्थ की महिमा इतनी है कि हजारों महापोत एक देश का माल दूसरे देश में पहुंचाने के लिए रात-दिन समुद्र के पानी को चीरते फिरते हैं। लोग बड़ी-बड़ी दुकानें लगाकर बैठे हैं। पूरा संसार अर्थ के लिए चौबीसों घंटे भटकता फिरता है।

काम के भूखे लोग क्या कुछ नहीं कर डालते। काम ने मनुष्य तो क्या, देवताओं को भी नहीं छोड़ा। इंद्र जैसे देवराज पतिव्रता शची की भी याद भूलकर उर्वशी के पीछे लग गए।

मोक्ष के लिए बड़े-बड़े राजा-महाराजाओं ने संसार के सभी सुखों को लात मार दी। राजमहलों को छोड़कर वे ऐसी निर्जन गुफाओं में चले गए, जिनके द्वार पर सिंह अपना गंभीर नाद किया करते थे। उन्होंने संसार से छुटकारा पाने के लिए ही यह सब किया। उनका एकमात्र लक्ष्य मोक्ष रहा।
 
धनी, त्यागी, कुलीन, महात्मा, ऋषि, मुनि, राजा, महाराजा, छैल, चोर, डाकू, व्यापारी, ये सभी पुरुषार्थ को ही लक्ष्य बनाकर अपने कार्य करते हैं। संसार में किसी के लिए धर्म का महत्त्व है तो किसी के लिए अर्थ का। किसी के लिए काम का तो किसी के लिए मोक्ष का। इनके कारण किसी को भी एक क्षण का अवकाश नहीं है।

इनके शास्त्र-ज्ञान की आवश्यकता | जिस प्रकार ये चारों पुरुषार्थ आवश्यक हैं, उसी प्रकार इनके शास्त्र-ज्ञान की भी आवश्यकता है। चाहे लोगों के मन में इन्हें प्राप्त करने के लिए पूरा उत्साह हो, चाहे उनका निश्चय पक्का हो, चाहे वे पूरा-पूरा प्रयत्न कर रहे हों, फिर भी बिना शास्त्र का अध्ययन किए इन तक नहीं पहुंचा जा सकता।

जो धर्म चाहता है, उसके लिए धर्म-शास्त्र का ज्ञान आवश्यक है। उसे जानकर ही वह धर्म का संग्रह कर सकता है। यही कारण है कि मनुजी ने धर्मशास्त्र को अन्य शास्त्रों से पृथक किया है। इसी प्रकार जो अर्थ चाहता है, उसे अर्थशास्त्र के ज्ञान की आवश्यकता है। बिना इसके ज्ञान के वह विघ्न-बाधा के बिना अपना प्रयोजन सिद्ध नहीं कर सकता। जब मुनिराज चाणक्य ने भारत की बागडोर अपने हाथ में ली थी तो उन्होंने वेद की तरह अर्थ-शास्त्र को भी पाठ्यक्रम में रखा था। आज भी उनके बनाए हुए अर्थशास्त्र का पठन-पाठन देखा जाता है। इसी प्रकार हमें दूसरे शास्त्रों के बारे में भी समझना चाहिए। किसी भी वस्तु के अनुभव का प्रचार बिना उस शास्त्र के पूर्ण ज्ञान के नहीं हो सकता।

कामशास्त्र- धर्मशास्त्र और अर्थशास्त्र की तरह कामशास्त्र भी एक शास्त्र है। अन्य पुरुषार्थों की तरह काम भी एक पुरुषार्थ है। जगदीश ने वेद में कामशास्त्र का भी उपदेश दिया है। वेद के कई ऐसे मंत्र हैं जो कामशास्त्र के रहस्य पर अच्छा प्रकाश डालते हैं। कुछ मंत्रों को हमने इसी पुस्तक में भी दिखाया है। कामशास्त्र के पहले प्रवर्तक महात्मा नंदीकेश्वरजी हुए, जो अपने तपोबल से शिव रूप को प्राप्त हो गए। दूसरे नम्बर पर श्वेतकेतु आए, जो वेदांत के स्तम्भ तथा आध्यात्मिक विद्या के भंडार थे। तीसरे प्रवर्तक ब्राभव्य पांचालजी हुए, जो ऋग्वेद के मुख्य ऋषि समझे जाते हैं। इन तीनों के अलावा दत्तकाचार्य, चारायण, सुवर्णनाभ, घोटकमुख, गोनीय, गोणिकापुत्र तथा कुचुमार जैसे महर्षिगण कामशास्त्र को सजा-संवार गए।

अंत में महर्षि वात्स्यायन ने पूर्व महर्षियों के कहे हुए कामशास्त्र को सूत्र के रूप में पिरोकर संसार के सामने प्रस्तुत किया। इस कथन से यह सिद्ध हो जाता है कि कामशास्त्र भी वेदानुकूल तथा ऋषियों द्वारा प्रवृत्त किया हुआ है। काम के चाहने वालों को इसकी सख्त आवश्यकता है।

पहले इसका पढ़ना अनिवार्य था | आज भले ही हम कामशास्त्र की पुस्तकों को अपने बच्चों से बचाकर रखें, परंतु पहले समय में इसका पठन-पाठन दूसरे शास्त्रों की तरह अनिवार्य था। इसे दूसरे शास्त्रों की तरह ब्रह्मचर्यपूर्वक उपाध्यायों से पढ़ना पड़ता था। भारत का प्रत्येक युवक इस शास्त्र को पूरी तरह से जानता था। आज भी ऐसा है। आज भी ऐसे ग्रंथों को पढ़ाया जाता है, जो अधिकांश कामशास्त्र के साथ संबंधित हैं। आज संस्कृत के पठन-पाठन में तो चतुर्दशी, अष्टमी, अमावस और पूर्णिमा मुख्य रूप से हैं। विचार करके देखा जाए तो शृंगार के काव्यों में जो कुछ भी पदार्थ रखा गया है, वह कामसूत्र के आधार पर ही रखा गया है।

विचारसागर के लेखक महात्मा निश्चल दासजी ने एक स्थान पर लिखा था- 'शृंगार रस के काव्य कामशास्त्र के ही अंग हैं।'

लड़कियां भी इसे पढ़ती थीं | प्राचीन समय में कामशास्त्र का अध्ययन लड़कियों के लिए भी उतना ही आवश्यक था, जितना लड़कों के लिए।

आचार्य वात्स्यायन ने विद्यासमुद्देश प्रकरण में बताया है-'साथ पली हुई धाय की लड़की, निष्कपट व्यवहार रखने वाली सखी, बराबर की मौसी, बूढ़ी दासी, खेली खाई हुई भिखारिन या अपने सामने रंगरेली तक कर लेने वाली विश्वसनीय बड़ी बहन, ये सभी कन्याओं को कामकला सिखाने वाले आचार्य हैं। यदि इनमें से किसी ने भी कामशास्त्र पढ़ा हो तो वे इसे इच्छुक कन्या को सिखा देती हैं।'

पहले कन्याएं काम-कला की विद्याएं सीखकर, एकांत में उनका अभ्यास किया करती थीं। यह बात साधारण गृहस्थ से लेकर राजघरानों तक एक-सी ही थी। महाराज विराट ने अपनी राजकुमारी उत्तरा को नाच-गान आदि काम-कलाओं की शिक्षा अर्जुन से दिलाई थी। महाराज चाप की महारानी गान-वाद्य आदि भंग विद्याओं में इतनी चतुर थी कि जब वह गुप्त भेष से चाप महाराज को अकबर के पंजे से छुड़ाने आई तो नाच-गान विद्या में उसने दिल्ली के सब गायकों को मात दे दी थी। अनेक ऐसी राजकुमारियों के बारे में भी सुना जाता है, जो कामशास्त्र में अति निपुण थीं। अनेक वेश्याओं के बारे में सुना जाता है कि वे इस शास्त्र में अपनी अच्छी योग्यता रखती थीं। कहने का तात्पर्य यह है कि भारत में भी पहले कन्याओं को कामशास्त्र का ज्ञान कराया जाता था।

कन्याएं बलात्कार से बच सकती हैं | पंडित तनसुखराम शर्मा ने नागरसर्वस्व की टिप्पणी करते समय लिखा है— 'बहुत-से पुरुषों का तो यह विचार है कि स्त्री के सर्वप्रथम मिलन में, आरंभ में ही लिंग से योनि का द्वार खोलना व लिंग को योनि में प्रविष्ट कराना ही अत्यंत आनंददायक है।'

वास्तव में इस भावना के कारण काम-पीड़ित पुरुष बालाओं को अधिक टटोलते फिरते हैं। ऐसे विचार रखने वाले पुरुषों से कन्याओं को बचाया जाना अति आवश्यक है। कन्याएं तभी बच सकती हैं, जब पुरुषों के दिमाग से यह मूर्खता भर विचार निकल जाए। यह मूर्खता भरा विचार तब निकलेगा, जब उन्हें कामशास्त्र की शिक्षा दी जाएगी।

ऐसे ही मूर्ख पुरुषों के कारण वेश्याएं उनसे अपनी बेटियों की मुंह-मांगी कीमत हासिल कर लेती हैं तथा उन्हें अनछुई बताकर उनसे चौगुनी कीमत मांग लेती हैं। वेश्याओं की बेटियां केवल इतना करती हैं कि संभोग के समय यूं हाय-तौबा मचा देती हैं, जैसे उन्हें भयंकर पीड़ा हो रही हो। बेवकूफ पुरुष उनके नाटक को समझ नहीं पाता और मूर्ख बन जाता है।

यदि ऐसी मानसिकता वाले पुरुष कामशास्त्र की शिक्षा प्राप्त कर लें तो उनकी पशुता दूर हो जाए। वे वेश्याओं के जाल में न फंसें। बालिकाओं से बलात्कार करने का प्रयास न करें। यदि बालिकाएं कामशास्त्र की शिक्षा प्राप्त कर लें तो वे ऐसे नीच पुरुषों को देखकर ही पहचान जाएं तथा उनसे अपनी रक्षा कर लें। कामशास्त्र का अध्ययन संसार से बलात्कार को मिटा सकता है। स्त्री व पुरुष रोगों का घर बनने से बच सकते हैं। वे एक-दूसरे की इच्छाओं को समझ सकते हैं तथा अपने जीवन का पूर्ण आनंद ले सकते हैं।

कामशास्त्र की अश्लीलता गुण है, दोष नहीं साहित्यकों की धारणा है कि वे रति के वर्णन में प्रयोग होने वाले शब्दों को साहित्य का दोष न मानकर गुण मानते हैं। वे कहते हैं 'सुरतारम्भगोष्ठयादावश्लीलत्वं तथा गुणः।' आभ्यंतर और बाह्य संप्रयोग निरुपण, सहवास के आरंभ के समय और गोष्टी की रंगरेलियों के वर्णन में यदि अश्लीलता आ भी जाए तो वह उसके वर्णन के चमत्कार को बढ़ाएंगी। उसे दूषित न करेगी। इस तथ्य को सभी साहित्यकों ने स्वीकार किया है।

आज अश्लीलता एक मनोरंजन का सामान हो गई है। स्त्रियों के अधनंगे चित्र सरे-बाजार धड़ाधड़ बिक रहे हैं। इनके बारे में कोई जुबान से एक अक्षर भी नहीं निकालता। आलिंगन, चुंबन तथा स्तन मर्दन के चित्रों से केवल विलासी पुरुषों के कमरों की ही सजावट नहीं होती, बल्कि होटलों के कमरे भी भरे पड़े रहते हैं।

सिनेमा-संसार को ही देख लीजिए । वह इससे भी आगे बढ़ गया है। जल विहार में जब तक अनावृत स्तन न दिखा दिए जाएं, जघन न झलका दिया जाए तो जल विहार पूरा ही नहीं होता। आलिंगन आदि काम-चेष्टाओं का दिखा देना तो इनके लिए एक साधारण-सी बात है। बाग की गोष्ठी में नायिका द्वारा अपने जघन पर हाथ पहुंचा देना, कुछ भाग उघाड़ देना तो आजकल साधारण-सी बात हो गई है। संभोग से पहले व अंत की जितनी भी मुद्राएं हैं, उन सभी को दिखाया जाता है तथा संभोग-क्रिया को भी संकेत द्वारा दिखा दिया जाता है। लगभग ऐसा ही नाटकों में भी होता है।

शृंगार की कविताओं का कोई भी भाग इनसे नहीं बचा हुआ। भूमिका अदा करते हुए नायक-नायिकाओं में काम की दशाएं दिखाई जाती हैं। उनसे आहे भरवाई जाती हैं। किसी की चाह में किसी को अचेत किया जाता है। ये सभी पदार्थ तथा इनके क्रम का ज्ञान कहां से आया? जो कुछ भी दिखाया जा रहा है, वह कामशास्त्र का ही एक पदार्थ शृंखलाबद्ध दिखाया जा रहा है। इसके कारण कामशास्त्र कभी अश्लील नहीं हो सकता।

आसनों का ज्ञान भी अश्लील नहीं | कामशास्त्र में जितने भी आसनों का उल्लेख पाया गया है, वे आनंददायक संभोग के लिए स्त्री-पुरुष दोनों के लिए ही हितकारी हैं। महर्षि चरक, सुश्रुत तथा बाणभट्ट भी कह गए हैं कि अन्य आसनों की अपेक्षा स्त्री उतान आसनों से रति करने में अधिक सुखी होगी। अन्य आसनों से गर्भाधान होना कठिन है।

जो आसन गर्भ धारण कराने वाले हैं तथा जो गर्भ के लिए घातक हैं, इनका उपदेश किसी दोष को न करके उस गुण को बताता है, जिसके लिए संभोग निर्दोष रूप से विहित है। पत्नी की आयु यदि पति से बहुत छोटी है तो मृर्गी के आसन से संभोग कराने से उसे कोई कष्ट न होगा। इसी प्रकार ही अन्य आसनों का विवरण कामशास्त्र में मिलता है।

आसन स्त्री-पुरुष के लिए लाभदायक हैं। गुप्तांगों के बड़े-छोटे होने से वे उचित ढंग से आनंददायक संभोग कर सकते हैं और आपस में प्रसन्न रह सकते हैं। प्रसन्न रहने से ही गृहस्थ जीवन आनंदपूर्वक बीतता है। जिन स्त्री-पुरुषों की जोड़ बराबर की नहीं है, वे बराबर वालों की तरह ही आनंद ले सकते हैं और अपने जीवन को सुखी बना सकते हैं।

ये आसन कितने ही मंदिरों में पत्थरों पर खुदे हुए मिलते हैं। अजंता व एलोरा नाम के पहाड़ में ये आसन मंदिर में खुदे हुए हैं। श्रीजगन्नाथपुरी के भुवनेश्वर मंदिर में भी ये सब बने हुए हैं। कोयली पर्वत पर हरसिद्धि नामक भगवती के मंदिर में इनका निर्माण हुआ है। काशी के नैपाल के मंदिर में इन आसनों को करते हुए स्त्री-पुरुषों के चित्र मिलते हैं। जिन्हें संदेह हो, वह स्वयं जाकर अपनी आंखों से देख सकते हैं।

कामसूत्र के अधिकरण

कामसूत्र को सात अधिकरणों में विभक्त किया गया है। प्रत्येक अधिकरण का अपना ही एक विशेष महत्त्व है। ये सात अधिकरण इस प्रकार हैं -

1. साधारण : जो अपने से पीछे के सब अधिकरणों के लिए समान हितकारी हो। जिसमें कि शास्त्र का सारा विषय समान रूप से आ जाए, जो कि शास्त्र-प्रवेश में कुंजी का कार्य करे।
2. साम्प्रयोगिक : सम्प्रयोग का अर्थ है मैथुन या सहवास! जिस अधिकरण का यही प्रयोजन हो, वह साम्प्रयोगिक कहलाता है। इसमें सहवास से संबंधित सारी बातें बताई गई हैं। इसके ज्ञान से मनुष्य की रमण की इच्छा से उठी हुई पाशविक प्रवृत्तियां शांत हो जाती हैं।
3. कन्यासम्प्रयुक्तक : सम्प्रयुक्तक का अर्थ है संप्रयोग या मैथुन। कन्या के सम्प्रयोग को कन्यासंप्रयुक्तक कहते हैं। इसमें विवाह आदि उपायों से कन्या प्राप्त करना तथा उसे मैथुन के लिए तैयार किए जाने संबंधी सभी बातों को विस्तारपूर्वक बताया गया है। इसके अलावा इसमें कन्या के स्वयंवर करने की विधियां भी बताई गई हैं।
4. भार्याधिकारिक : इसमें विवाहित स्त्रियों का अपने पति के साथ व्यवहार और पति को अपनी प्रधान-अप्रधान सभी विवाहित स्त्रियों के साथ व्यवहार करने की विधियां बताई गई हैं। इसके अलावा प्रधान पत्नी का अपनी सौतों के साथ व उनके बच्चों के साथ उचित व्यवहार करने के ढंग बताए गए हैं।
5. पारदारिक : परदार का अर्थ है दूसरे की स्त्री। इसमें दूसरों की स्त्रियों को चाहने वाले पुरुषों के उन उपायों को बताया गया है, जिनसे वे उन्हें फंसा लेते हैं और प्राप्त कर लेते हैं। इन्हें जानना प्रत्येक गृहस्थ के लिए आवश्यक है, क्योंकि इन उपायों को जानने वाला ही दुष्ट पुरुषों से अपने परिवार की स्त्रियों की रक्षा कर सकता है।
6. वैशिक : वेश का अर्थ है वेश्याओं का व्यवहार । इस अधिकरण में वेश्या तथा वेश्या के नायकों की व्यवहार की बातें हैं। यह अधिकरण वेश्याओं के छल-कपट की पोल खोलता है। इसका अध्ययन करने वाला पुरुष कभी भी वेश्याओं के छल-कपट का शिकार नहीं होता। वह कभी धोखे में नहीं आता।
7. औपनिषदिक : रहस्य को उपनिषद कहते हैं। इस अधिकरण में सब विषयों में हितकारी उपाय छिपे हुए हैं। इसमें दुसाध्य को साध्य करने वाली अनेक विधियों का वर्णन है। नामर्दी दूर करने तथा सौंदर्य बढ़ाने वाली अनेक औषधियों का वर्णन है।

कोकशास्त्र क्या है । पंडित कोकराज का ‘रतिरहस्य' कामसूत्र का ही अनुवाद है। इसमें पंडितजी ने साम्प्रयोगिक, पारदारिक, भार्याधिकारिक तथा औपनिषदिक, इन चार अधिकरणों को लिया है। मूर्ख मंडली में इनकी इतनी प्रसिद्धि है कि उन्होंने 'कामसूत्र' और 'वात्स्यायन' का नाम ही मिटाकर इन चार अधिकरणों के पदार्थ को 'कोकशास्त्र' के नाम पर प्रचलित कर दिया।

आजकल के दुकानदार तो और भी दो हाथ आगे बढ़ गए। उन्होंने दो-चार दवाइयां, दो-चार आसन, नायक-नायिकाओं के लक्षण इत्यादि बताकर तरह-तरह की पुस्तकें तैयार करवाकर 'कोकशास्त्र' के नाम पर बेच दी तथा खूब धन कमा लिया और यह सिलसिला लगातार जारी है।

आज जो कुछ भी बाजार में प्रचलित हो रहा है, उसका मूल रूप कामसूत्र ही है। महान ऋषि वात्स्यायनजी का असली कामसूत्र यदि कहीं उपलब्ध भी है तो उसकी भाषा इतनी कठिन है कि साधारण व्यक्ति उसका पूरा-पूरा लाभ नहीं उठा पाता। प्रस्तुत पुस्तक को मैंने सजा-संवारकर बिल्कुल सरल भाषा में लिखा है। कठिन भाषा व कठिन शब्दों को दूर करके इस पुस्तक को मैंने इतना सरल बना दिया है कि साधारण पाठक भी इससे पूर्णतः लाभान्वित हो सकेंगे। आचार्य वात्स्यायन ने 'कामसूत्र' के माध्यम से लोगों को जो ज्ञान देना चाहा है, वह इस पुस्तक द्वारा सरलता से प्राप्त किया जा सकेगा।

आचार्य वात्स्यायन के मतानुसार पुस्तक में पर-स्त्री गमन आदि कुछ तथ्यों को उचित बताया गया है, लेकिन आज के बदलते परिवेश में पर-स्त्री गमन जैसी प्रवृत्तियों के कारण एड्स जैसे भयंकर रोगों का होना संभव है। अतः ऐसे कर्म न किए जाएं तो ही अच्छा है। ऐसा करना स्वयं को मौत के मुंह में धकेलना है।

चारों वेदों पर भाष्य करने वाले श्री सायणाचार्यजी ने भी इस बात को स्वीकार किया है 'अज्ञानं पुस्तस्तेषां भाति कक्षासु कासुचित्।' अर्थात चाहे कोई कितना भी विद्वान हो, उसके निरूपण में किसी अंश में कमी रह ही जाती है। फिर मैं तो एक साधारण-सा व्यक्ति हूं। इस बात की आशा करना मेरे लिए उचित न होगा कि मेरा यह प्रयास पूरी तरह दोषमुक्त होगा।

प्रस्तुत पुस्तक में संस्कृत श्लोकों की यद्यपि गहन अध्ययन-मनन करके ही व्याख्या की गई है, तथापि कोई त्रुटि रह सकती है। अतः कृपालु पाठकों से क्षमा प्रार्थना है कि यदि उन्हें पुस्तक में किसी प्रकार की कोई त्रुटि नजर आती है तो हमें शीघ्रातीघ्र सूचित करें।

व्याख्याकार :
-जे.के. वर्मा

'वात्स्यायन का कामसूत्र' के विषय में प्रिंट मीडिया की राय जीवन में काम का विशेष महत्त्व है। ऋषि-मुनियों ने अर्थ, धर्म और मोक्ष के साथ-साथ काम को भी मानव-जीवन का लक्ष्य माना है। यदि मनुष्य की काम संतुष्टि न हो तो वह मृत्युपर्यंत अतृप्त-सा महसूस करता है। काम समस्त चेतन-अचेतन क्रियाओं का केंद्र है, इसलिए इसकी जानकारी के बगैर शारीरिक व दिमागी तौर पर स्वस्थ एवं खुश नहीं रहा जा सकता। पंडित वात्स्यायन ने 4-5वीं शताब्दी में प्रयोग एवं अनुभव के आधार पर काम के बारे में विभिन्न जानकारियों के खजाने के रूप में कामसूत्रम ग्रंथ की रचना की। पंडित वात्स्यायन द्वारा रचित कामसूत्र की संस्कृत से हिंदी में व्याख्या व्याख्याकार जे.के. वर्मा का अच्छा प्रयास है। पुस्तक में करीब 36 अध्याय हैं। प्रथम अध्याय में शास्त्र संग्रह के बारे में लिखा गया है। इस किताब में स्त्री-पुरुषों के कामशास्त्र पढ़ने का समय एवं कामसूत्र की 64 अंग विद्या वगैरह के बारे में बताया गया है। दूसरे प्रकरण में चार प्रीतियों आलिंगन, स्पर्श एवं चुंबन के भेद बताए गए हैं। इसके अलावा नखक्षत, दंतकर्म, सूरत कलह, विपरीत रति, औपरिष्टक एवं संभोग क्रिया तथा प्रेम कलह के बारे में भी अच्छी व्याख्या की गई है। मजे की बात यह है कि पराई स्त्री को किस प्रकार वश में किया जाए, इसका हल स्त्री-पुरुष शीलावस्थापन प्रकरण में दिया गया है। ईश्वर कामिततम् प्रकरण में बताया गया है कि किस तरह बड़े लोग षड्यंत्रों का ताना-बाना बुनकर पराई स्त्रियों को जाल में फंसाकर भोगते हैं। इससे बचने हेतु जानने के लिए नवयौवनाओं के लिए भी यह अच्छे प्रकरण हैं। इस किताब में वेश्याओं के कार्य तथा धन कमाई, वेश्याओं का पत्नी के समान आचरण करना एवं वेश्याओं के अर्थों एवं अनर्थों पर भी विचार किया गया है। इसके अलावा वशीकरण एवं बाजीकरण के अद्भुत प्रयोग एवं काम से संबंधित विविध प्रकार के योग पर भी चर्चा है। इस किताब में 26 आसनों के रेखाचित्र भी दिए गए हैं।

-सज्जाद मिर्जा
पंजाब केसरी, नई दिल्ली
17 दिसंबर, 2002

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